Tuesday, May 29, 2018

रिश्तों के मायने


आज के दौर में
रिश्तों के मायने बदल गए
कल तक जो अपने थे
वो पराए हो गए
पैसे की चाहतों में
सब भूल कर बैठे
जिन रिश्तों में जिंदगी थी
उन्हें दूर कर बैठे
चारपाई पर लेट कर
बीते लम्हों को याद करते हैं
जो गुजरा है जमाना
उन लम्हों की बात करते हैं
समय के धुंध में
रिश्ते भी धुंधले हो गए
बीता जिन रिश्तों में
था बचपन कभी
बदलते दौर के साथ
बदले रिश्ते सभी
आज जब भी वो
बीते दिनों को याद करते हैं
पलकों में छुपे उनके
आंसू निकल पड़ते हैं
जो रिश्तों की बगिया में
बिताया करते थे पल
न जाने कैसे भूल जाते हैं
अपना बीता हुआ कल
***अनुराधा चौहान***

7 comments:

  1. सही कहा हर घडी बदलते हैं स्वार्थ के रिश्तों के मायने ।
    अप्रतिम रचना।

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  2. बहुत ही प्यारी रचना

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    1. धन्यवाद शकुंतला जी

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  3. वाह !!! बहुत सुन्दर... सार्थक रचना 👌👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार नीतू जी

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