(चित्र गूगल से साभार) |
समंदर लहराने लगा
दिल में सोया हुआ
वह खौफनाक मंजर
फिर जगाने लगा
यह भयानक हवाएं
यह काली घटाएं
देख दर्द का सैलाब
मेरी आंखों से आने लगा
नहीं भूल पाती में
तेरी आंखों के आंसू
वो तड़प वो पीड़ा
जिन्हें तूने झेला
भयावह वह मंजर
थी नियति भी सहमी
रूह तेरे जिस्म से
अब निकलने लगी थी
थे बेबस और लाचार
हम सिसकने लगे थे
द्रवित होकर आसमां भी
अब रोने लगा था
तुझे लेने आगोश में
थी हवाएं भी आतुर
नहीं भूल सकती
भयावह वह मंजर
यह दुःख का समंदर
जो बसा हुआ है
मेरे मन के अंदर
नहीं भूल सकती में
नहीं भूल सकती
***अनुराधा चौहान***
बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर आभार लोकेश जी
Deleteदिल में दर्द का समंदर
ReplyDeleteनहीं भूलता वह मंजर
मर्मस्पर्शी रचना 🙏
सादर आभार 🙏
ReplyDeleteदर्द के समुन्दर सूखते नहीं न ही यादों से जाते हैं ...
ReplyDeleteनिकल आते है यदा कदा दिल के मुहाने ... बहुत दर्द भरी रचना है ...
सही कहा आपने दिगंबर जी सादर आभार
Deleteअवश्य यशोदा जी सादर आभार
ReplyDeleteदर्द की इंतहा ।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteवाह!!बहुत खूब!!
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
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