मैं नन्ही ओस की बूंद
नन्हा सा अस्तित्व मेराहे चांदी सी आभा मुझमें
चांद के जैसी शीतलता
प्रकृति से में जन्मती
प्रकृति की गोद में खेलती
प्रकृति की गोद में समा जाती
फूल पंखुड़ियों के दामन में
कुछ लम्हे प्यार के जीती
प्रेम का संदेश में देती
प्रकृति का श्रृंगार में करती
देती मोतियों सी आभा बिखेर
नहीं सूर्य का ताप सहन
धूप देख कुम्हला जाती
रात्रि मिलन का वादा कर
प्रकृति की गोद में सो जाती
मैं नन्ही ओस की बूंद
कुछ लम्हों का अस्तित्व मेरा
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteमै आसमां का झरता अनुराग हूं
या सिसकती रात का अश्क कतरा
नही जानती पर पल्लव शैया पर
आस का मोती बन बिखरती
मै नन्ही तुषार बूंद.. .
सुंदर पंक्तियां सादर आभार कुसुम जी
Deleteबहुत सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद दी
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद लोकेश जी
Deleteओस की बूँद कितनी कहानियाँ समेटे रहती है शहरों के लिए गीतकारों के लिए .।। बहुत माँ। बावन रचना है ...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteवाह....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद रेवा जी
Deleteधन्यवाद सागर जी
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