क्यों माया के पीछे
इंसान तू करे है किट किट
बीत रहा है समय
सुन घड़ी की टिक-टिक
मोह माया के फेर में
जिंदगी घट रही नित नित
हरी भजन तू करले
पुण्य कुछ करले अर्जित
मुट्ठी बांध के आया जग में
मुट्ठी ले जायेगा रीति
रिश्ते नाते छोड़ लगा है
करने तू धन संचित
रिश्तों में तू थोड़ा जी ले
छोड़ कर सारी खिट खिट
समय बीत रहा तेजी से
कब आए घड़ी वह अंतिम
***अनुराधा चौहान***
इंसान तू करे है किट किट
बीत रहा है समय
सुन घड़ी की टिक-टिक
मोह माया के फेर में
जिंदगी घट रही नित नित
हरी भजन तू करले
पुण्य कुछ करले अर्जित
मुट्ठी बांध के आया जग में
मुट्ठी ले जायेगा रीति
रिश्ते नाते छोड़ लगा है
करने तू धन संचित
रिश्तों में तू थोड़ा जी ले
छोड़ कर सारी खिट खिट
समय बीत रहा तेजी से
कब आए घड़ी वह अंतिम
***अनुराधा चौहान***
नमन आप की अप्रतिम सोच और बेजोड़ लेखनी को।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteसुंदर शाश्वत ता का बोध देती आधयात्मिक रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
Deleteबहुत सुंदर और सत्य
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ... यही ही सत्य है फिर भी मनुष्य भाग रहा है माया के पीछे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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