गंगा तू बहती जा
कल कल गीत सुनाती जा
निच्छल निर्मल तेरी धारा
सबके जीने का तु सहारा
भागीरथ की तू भागीरथी
शिव की जटाओं से तू है बहती
जहां जहां से निकल कर आती
जीवन में रंग भरती जाती
तेरे मन में कोई बैर नहीं
तेरा अपना कोई शहर नहीं
पर्वतों से निकल कर आती
सागर में जाकर मिल जाती
गंगासागर तू कहलाती
सागर से तेरा मिलन अमर है
सबसे पावन यह तीरथ है
गंगा तू बहती जा
कल कल गीत सुनाती जा
***अनुराधा चौहान***
कल कल गीत सुनाती जा
निच्छल निर्मल तेरी धारा
सबके जीने का तु सहारा
भागीरथ की तू भागीरथी
शिव की जटाओं से तू है बहती
जहां जहां से निकल कर आती
जीवन में रंग भरती जाती
तेरे मन में कोई बैर नहीं
तेरा अपना कोई शहर नहीं
पर्वतों से निकल कर आती
सागर में जाकर मिल जाती
गंगासागर तू कहलाती
सागर से तेरा मिलन अमर है
सबसे पावन यह तीरथ है
गंगा तू बहती जा
कल कल गीत सुनाती जा
***अनुराधा चौहान***
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