(चित्र गूगल से साभार) |
आज फिर तेरी याद
मेरे दिल को
सताने लगी
दिल में सोए थे जो
वो अधूरे स्वप्न
जगाने लगी
करती हूं तेरा
इंतजार में वहीं
मिला करते थे
हम जहां कभी
यादों के समंदर में
में डूबती जाती हूं
जो लम्हे साथ बिताए
उन लम्हों को
भूल नहीं पाती हूं
सोचती हूं काश
फिर से लौट आती
वह सुहानी शाम
जब हम तुम मिले थे
आगोश में तेरी
कुछ लम्हें जिए थे
कुछ गीत गुनगुनाए
कुछ नगमे सुने थे
चुनकर जिंदगी से
हसीन लम्हों को
कुछ सपने बुने थे
फिर आने का
वादा कर
तुम ऐसे गए
फिर लौट कर
नहीं आए
अकसर यहां आकर
सोचती हूं मैं कभी
खुद को वहीं पाती हूं
तुम मुझे भूल गए
यह भूल नहीं पाती हूं
सोचती हूं काश
फिर से लौट आए
वह सुहानी शाम
***अनुराधा चौहान***
यादें मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अभिलाषा जी
Deleteएक कसक लिये विरह का दर्द।
ReplyDeleteउम्दा रचना
धन्यवाद कुसुम जी
Delete"सोचती हूं काश
ReplyDeleteफिर से लौट आए
वह सुहानी शाम"
वाह वाह
विरह में पुनः उन्ही लम्हों में जाने को अभिलषित मन
हृदयस्पर्शी
सादर आभार आंचल जी
Deleteकाश
ReplyDeleteफिर से लौट आए
वह सुहानी शाम....
काश
ReplyDeleteफिर से लौट आए
वह सुहानी शाम !!!!!!!!
विरह में भ्रामक प्रत्याशा से उलझता मन ! मर्मस्पर्शी रचना !!!!
सादर आभार रेणु जी
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