झूले पड़ गए कदम की डाली
घिर आई काली घटा मतवाली
राधा संग झूलें झूलना
श्री कृष्ण मुरारी
कोयल कूहके डाली-डाली
नाच रहीं गोप कुमारी
घन गरजत और नाचे मयूरा
नाच रहा ब्रज पूरा
राधा संग झूलें झूलना
श्री कृष्ण मुरारी
नन्ही-नन्ही रिमझिम बूँदें
राधाश्याम के मुख को चूमें
ब्रजमंडल में छाई हरियाली
राधा संग झूलें झूलना
श्री कृष्ण मुरारी
मस्त मगन देख नर नारी
मेघ मल्हार गाएं झूम झूम कर
श्री गोविंदम् गिरधारी
राधा संग झूलें झूलना
श्री कृष्ण मुरारी
***अनुराधा चौहान***
प्रिय अनुराधा जी ___सावन का महीना हो और राधे ध्यान झूलाझू ना झूलें तो झूले का होना ना होना बराबर है ।अत्यंत माधुर्य पूर्ण ।रचना ।गाओ तो गीत सा आनंद देगी। राधे राधे ¡¡¡¡!!
ReplyDeleteराधे राधे रेणुवाला जी आभार आपका
Deleteवाह मोहक झूलना सजाया आपने राधे कृष्ण का सरस सुंदर प्रवाह लिये कोमल रचना।
ReplyDeleteसादर आभार इंदिरा जी
Deleteवाह! बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद लोकेश जी
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी आपने मेरी रचना को चुन कर मुझे उत्साहित किया 🙏
Deleteहमारे यहाँ सावन में पेड़ की डाली से झूला डालते हैं तो पहले राधा कृष्ण की मूर्तियाँ रखकर झुलाते हैं। राधा कृष्ण झूल लें, फिर बाकी सखी सहेलियाँ....
ReplyDeleteसुंदर रचना।
धन्यवाद मीना जी
DeleteThanks
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