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Saturday, September 8, 2018

खामोशियों की जुबान

खामोशियां कब
बेजुबान होती हैं
खामोशियों की भी
होती है जुबां
जो बड़ी खामोशी से
बड़ी बड़ी बाते
कह जाती हैं
जो हम जुबां से
नहीं कह पाते
यह पेड़ पौधे
बड़ी खामोशी से
बन जाते है
हमारे जीवन
का हिस्सा
यह घर दीवारें
खामोश जुबां से
कर जाते हैं वो
बातें वो गहरे भेद
जो छिपे हैं इनके अंदर
यह खामोश आईना
बड़ी खामोशी से
दिन पर दिन
ढलती उम्र दिखा
याद दिलाता
बीते लम्हों की
कुछ रिश्ते भी
बहुत खामोशी से
करते हैं फिक्र
पर जुबां से कभी
नहीं करते कोई जिक्र
कुछ रिश्ते
आंखों में कर
जाते कितनी बातें
जिन्हें समझने के लिए
किसी शब्दों की
जरुरत नहीं होती
जहां बातों से
बात बिगड़ती है
खामोशी बड़ी
खामोशी से बना
जाती बिगड़े काम
खामोशियों की भी
होती है जुबान
***अनुराधा चौहान***

19 comments:

  1. धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  2. बहुत खूब,अनुराधा दी। खामोशियों की भी जुबान होती हैं।

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  3. धन्यवाद अमित जी

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  4. बहुत सुंदर बात खामोशियां कुछ बोलती है सुनने की कोशिश तो करो ।
    वाह वाह !!!

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मेरी रचना को बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए

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    हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

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    1. अवश्य आदरणीय आभार आपका

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  7. खामोशियों के स्वर सबसे प्रखर होते हैं | बेहतरीन रचना !!!!!!!!

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    1. बहुत बहुत आभार रेणू जी

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  8. "खामोशियां कब
    बेजुबान होती हैं
    खामोशियों की भी
    होती है जुबां "
    खामोशियाँ भी देखती,सुनती और सब समझती भी हैं . बहुत खूब ....।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी

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  9. धन्यवाद आदरणीय

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  10. बेहतरीन रचना 👌👌👌

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  11. बहुत सुन्दर ! अनुराधा जी. जुबान तो आँखों की भी होती है पर ख़ामोशी की ज़ुबान में तो अनगिनत संवाद छिपे रहते हैं. बस, उनको पढ़ने का हुनर आना चाहिए.

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