खामोशियां कब
बेजुबान होती हैं
खामोशियों की भी
होती है जुबां
जो बड़ी खामोशी से
बड़ी बड़ी बाते
कह जाती हैं
जो हम जुबां से
नहीं कह पाते
यह पेड़ पौधे
बड़ी खामोशी से
बन जाते है
हमारे जीवन
का हिस्सा
यह घर दीवारें
खामोश जुबां से
कर जाते हैं वो
बातें वो गहरे भेद
जो छिपे हैं इनके अंदर
यह खामोश आईना
बड़ी खामोशी से
दिन पर दिन
ढलती उम्र दिखा
याद दिलाता
बीते लम्हों की
कुछ रिश्ते भी
बहुत खामोशी से
करते हैं फिक्र
पर जुबां से कभी
नहीं करते कोई जिक्र
कुछ रिश्ते
आंखों में कर
जाते कितनी बातें
जिन्हें समझने के लिए
किसी शब्दों की
जरुरत नहीं होती
जहां बातों से
बात बिगड़ती है
खामोशी बड़ी
खामोशी से बना
जाती बिगड़े काम
खामोशियों की भी
होती है जुबान
***अनुराधा चौहान***
बेजुबान होती हैं
खामोशियों की भी
होती है जुबां
जो बड़ी खामोशी से
बड़ी बड़ी बाते
कह जाती हैं
जो हम जुबां से
नहीं कह पाते
यह पेड़ पौधे
बड़ी खामोशी से
बन जाते है
हमारे जीवन
का हिस्सा
यह घर दीवारें
खामोश जुबां से
कर जाते हैं वो
बातें वो गहरे भेद
जो छिपे हैं इनके अंदर
यह खामोश आईना
बड़ी खामोशी से
दिन पर दिन
ढलती उम्र दिखा
याद दिलाता
बीते लम्हों की
कुछ रिश्ते भी
बहुत खामोशी से
करते हैं फिक्र
पर जुबां से कभी
नहीं करते कोई जिक्र
कुछ रिश्ते
आंखों में कर
जाते कितनी बातें
जिन्हें समझने के लिए
किसी शब्दों की
जरुरत नहीं होती
जहां बातों से
बात बिगड़ती है
खामोशी बड़ी
खामोशी से बना
जाती बिगड़े काम
खामोशियों की भी
होती है जुबान
***अनुराधा चौहान***
Nice poetry
ReplyDeleteThanks Sara ji
Deleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
ReplyDeleteबहुत खूब,अनुराधा दी। खामोशियों की भी जुबान होती हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योती जी
Deleteधन्यवाद अमित जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात खामोशियां कुछ बोलती है सुनने की कोशिश तो करो ।
ReplyDeleteवाह वाह !!!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मेरी रचना को बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए
ReplyDeleteनिमंत्रण विशेष :
ReplyDeleteहमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
अवश्य आदरणीय आभार आपका
Deleteखामोशियों के स्वर सबसे प्रखर होते हैं | बेहतरीन रचना !!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेणू जी
Delete"खामोशियां कब
ReplyDeleteबेजुबान होती हैं
खामोशियों की भी
होती है जुबां "
खामोशियाँ भी देखती,सुनती और सब समझती भी हैं . बहुत खूब ....।
बहुत बहुत आभार मीना जी
Deleteधन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deleteबहुत सुन्दर ! अनुराधा जी. जुबान तो आँखों की भी होती है पर ख़ामोशी की ज़ुबान में तो अनगिनत संवाद छिपे रहते हैं. बस, उनको पढ़ने का हुनर आना चाहिए.
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
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