फागुन जब लेता अँगड़ाई,पुरवाई तब महके।
पीली पीली सरसों फूली,देख उसे मन चहके॥खिलती कलियाँ झरते पत्ते,पतझड़ भी मनभाए।रंगों का अब मौसम आया,पुरवा गीत सुनाए॥
फाग महीना धूम मचाए,रंग खुशी के बरसे।
पिया मिलन की आस लगाए,प्रीत न कोरी तरसे॥
नवपल्लव डालों पर झूमे, लेकर मीठीं किस्से।
कल तक जो लहराते पत्ते,अब माटी के हिस्से॥
मधुमास बना चढ़ता यौवन, प्रेम के गीत सुनाता।
जीवन फिर ढलती काया ले,पत्ते सा झड़ जाता॥
यह जीवन की रीत पुरानी,मानो या मत मानो।
प्रेम बिना यह जीवन सूना,सच जीवन का जानो॥
अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-2-23} को जीवन का सच(चर्चा-अंक 4641) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी
Deleteखूबसूरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार नितिश जी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteखिलती कलियाँ झरते पत्ते,पतझड़ भी मन भाए।
ReplyDeleteरंगों का अब मौसम आया,पुरवा गीत सुनाए॥
अत्यंत सुन्दर सृजन ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteसुन्दर रीतिकाल का आभास कराती रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteफागुन मास की खूबसूरती का बखान करता हुआ बहुत ही खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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