चलने लगी सर्द हवाएंँ
शिशिर ऋतु का
एहसास कराए
आगोश में अपने लपेटे
कहीं कोहरे की घनी चादर
के बीच फंसी सूर्य की
के बीच फंसी सूर्य की
किरणें बेताब है ज़मीं छूने को
कहीं गुनगुनी धूप
तन को भाती
कहीं ठंड में ठिठुरते लोग
फटी चादर में
तन को ढकने का
जबरन प्रयास करते दिखते
पुष्पों की पंँखुड़ियों पर
ढुलक कर समांँ जाती
धूप देख भूमि
के आगोश में
कहीं लोग अलाव जलाकर
मौसम का मजा लेते दिखते
जमने लगी बूंँदें ओस कीपुष्पों की पंँखुड़ियों पर
ढुलक कर समांँ जाती
धूप देख भूमि
के आगोश में
कभी कभी
सर्द हवाएंँ भी
तन जलाने लगती हैं
जो खो गया जीवन में
वो यादें ताजा हो जाती है
बीतने लगता है वर्ष
जाने कितनी यादें साथ ले
इस आस के साथ
आने वाला वर्ष
अच्छा गुज़रे
जब चले सर्द हवाएंँ तो
शिशिर भी बड़ा
सुहाना लगे
सुहाना लगे
खिले सुख की धूप
मौसम यह मनभावन लगे
***अनुराधा चौहान***
Very nice
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहैप्पी विंटर
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत बहुत आभार श्वेता जी
ReplyDeleteकभी कभी,सर्द हवाएं भी ,तन जलाने लगती हैं
ReplyDeleteजो खो गया जीवन में,वो यादें ताजा हो जाती है,सुंदर रचना कुसुम जी
कामिनी जी आपने टंकण में शायद गलती से कुसुम नाम लिख दिया है ये रचना बहन अनुराधा जी की है । सस्नेह।
Deleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर! गहरी संवेदनाएँ समेटे अप्रतिम रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteजो खो गया जीवन में
Deleteवो यादें ताजा हो जाती है
बीतने लगता है वर्ष
जाने कितनी यादें साथ ले
इस आस के साथ
आने वाला वर्ष
अच्छा गुज़रे
बहुत ही सुन्दर भाव...
अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
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