Thursday, December 13, 2018

सर्द हवाएं

चलने लगी सर्द हवाएंँ
शिशिर ऋतु का 
एहसास कराए
आगोश में अपने लपेटे
कहीं कोहरे की घनी चादर
के बीच फंसी सूर्य की
किरणें बेताब है ज़मीं छूने को
कहीं गुनगुनी धूप 
तन को भाती
कहीं ठंड में ठिठुरते लोग
फटी चादर में 
तन को ढकने का
जबरन प्रयास करते दिखते
कहीं लोग अलाव जलाकर
मौसम का मजा लेते दिखते
जमने लगी बूंँदें ओस की
पुष्पों की पंँखुड़ियों पर
ढुलक कर समांँ जाती
धूप देख भूमि 
के आगोश में
कभी कभी 
सर्द हवाएंँ भी
तन जलाने लगती हैं
जो खो गया जीवन में
वो यादें ताजा हो जाती है
बीतने लगता है वर्ष
जाने कितनी यादें साथ ले
इस आस के साथ
आने वाला वर्ष 
अच्छा गुज़रे
जब चले सर्द हवाएंँ तो
शिशिर भी बड़ा 
सुहाना लगे
खिले सुख की धूप
मौसम यह मनभावन लगे
***अनुराधा चौहान***

16 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया 👌

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  2. बहुत सुंदर
    हैप्पी विंटर

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  3. बहुत बहुत आभार श्वेता जी

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  4. कभी कभी,सर्द हवाएं भी ,तन जलाने लगती हैं
    जो खो गया जीवन में,वो यादें ताजा हो जाती है,सुंदर रचना कुसुम जी

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    1. कामिनी जी आपने टंकण में शायद गलती से कुसुम नाम लिख दिया है ये रचना बहन अनुराधा जी की है । सस्नेह।

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    2. बहुत बहुत आभार सखी

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  5. बहुत सुंदर! गहरी संवेदनाएँ समेटे अप्रतिम रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी

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    2. जो खो गया जीवन में
      वो यादें ताजा हो जाती है
      बीतने लगता है वर्ष
      जाने कितनी यादें साथ ले
      इस आस के साथ
      आने वाला वर्ष
      अच्छा गुज़रे
      बहुत ही सुन्दर भाव...

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  6. अच्छी अभिव्यक्ति

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  7. बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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