Thursday, February 14, 2019

प्रेम का कोई दिन नहीं

प्रेम का कोई दिन नहीं
प्रेम का कोई माह नहीं
प्रेम आत्मा की आवाज है
प्रेम सृष्टि का आधार हैं 
यह एक सुखद एहसास है
बंधी डोर रिश्तों की प्रेम से
मिट जाते कलह क्लेष सब
प्रेम हृदय की आवाज़ है
भावनाओं का सम्मान है
अंधेरे मन का उजाला है
प्रेम कोई शब्द नहीं
ख़ामोश आँखो की जुबां है
प्रेम अथाह सागर है
यह साधना है त्याग है
प्रेम ईश्वर का वरदान है 
दर्द का मरहम है प्रेम
टूटे दिलों को जोडे
वह पावन बंधन है यह
आँखें कहती प्रेम की भाषा
सुंदर पावन यह परिभाषा
निर्मल झरने-सा प्रवाह है प्रेम
दिल की गहराईयों में बसा प्रेम
प्रेम वासना नहीं समर्पण है
दिल से दिल को अर्पण है
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  2. प्रेम कोई शब्द नहीं
    ख़ामोश आँखो की जुबां है
    प्रेम अथाह सागर है
    यह साधना है त्याग है
    प्रेम ईश्वर का वरदान है
    सही कहा प्रेम का कोई दिवस नहीं।
    लाजवाब सृजन।

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  3. सच में प्रेम का कोई नहीं
    परिस्थितियों और भावनाओं का आलोड़न ही केंद्र बिंदु है।
    सुंदर अभिव्यक्ति।
    सस्नेह।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी।

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  4. निर्मल झरने-सा प्रवाह है प्रेम
    दिल की गहराईयों में बसा प्रेम
    प्रेम वासना नहीं समर्पण है
    दिल से दिल को अर्पण है///
    बहुत ही सरल शब्दों में पेम की सुंदर परिभाषा अनुराधा जी | प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई |

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  5. निर्मल झरने-सा प्रवाह है प्रेम
    दिल की गहराईयों में बसा प्रेम
    प्रेम वासना नहीं समर्पण है
    दिल से दिल को अर्पण है

    प्रेम को पुर्णता प्रदान करतीं सुन्दर सृजन सखी 🙏

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