सूखी टहनियों को लिए खड़ा
कड़ी धूप में तन्हा पेड़
अकेलेपन की वेदना सहता
ना राही ना पंछी बस राह है देखता
यादों में खोया सोचता यही है
कोई बैठे पास तो
मैं छाँव भी न दे सकूँ
पतझड़ के मौसम में
किसी काम का नहीं हूँ
राह देखता हूँ यह बहार
कब लौटकर आएगी
पंछियों के शोर से मुझे गुदगुदाएगी
हरी-भरी डालियों के पंखे झुलाएगी
बैठेंगे मेरी छाँव में दीवाने प्यार के
तन्हाईयाँ दूर हों आए दिन बहार के
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
तन्हा पेड़ की वेदना बखूबी बयान की आपने अनुराधा जी. सादर 🙏
ReplyDeleteसहृदय आभार सुधा जी
Deleteमार्मिक
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
🙏🙏🙏
धन्यवाद आदरणीय
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 25/04/2019 की बुलेटिन, " पप्पू इन संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् जी
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !
जी आपका स्वागत है बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
--अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी
Deleteबेहद सुन्दर और हृदयस्पर्शी रचना अनुराधा जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteआपकी दोनों रचनाएँ पढ़ीं। यह रचना पहले वाली रचना से भी सुंदर है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ¡¡
ReplyDeleteपत्र विहीन पेड़ की वेदना का हृदय स्पर्शी चित्रण।
बहुत सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुंंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार पम्मी जी
Deleteलाज़बाब रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें
शब्दों को मुस्कराहट पर आज
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट परकुछ मेरी कलम से अनीता सैनी, रेणु, अनुराधा चौहान :)
जी अवश्य बहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी
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