ख्व़ाहिशों के झरोखों से
झाँकती उम्मीद भरी आँखें
वक़्त की धूप में मुरझाया चेहरा
फ़िर भी होंठों पर मुस्कान लिए
कर्मशील व्यक्तित्व के साथ
सबकी खुशियों में अपने सपने ख़ोजती
सहनशीलता की बनकर मूरत
ख़ुद की पहचान को भूलती जाती
रिश्तों की बनकर जन्मदात्री
उपेक्षा के अँधेरों को झेलती
प्रताड़ना सहती फ़िर भी हँसती
अपने वजूद को कायम रखती
जानती है खूब नहीं निर्भर किसी पर
अगर वो जिद्द अपनी ठान ले
हौसले की उडान भरकर
ख्वाहिशों को हाथों से थाम ले
फ़िर भी झुक जाती हमेशा वो
अपनों की खुशियों के बोझ तले
रो लेती मन ही मन होंठों पर मुस्कान लिए
रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
ख्व़ाहिशों के झरोखों के बहानेनिःशब्द करती लाइन...कुछ नहीं बाकी बचा कहने को.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ....
आप की इस रचना में खास यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई है
रिश्तों की बनकर जन्मदात्री
उपेक्षा के अँधेरों को झेलती
प्रताड़ना सहती फ़िर भी हँसती
अपने वजूद को कायम रखती
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार संजय जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसहृदय आभार सुमन जी
Deleteब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यवाद शिवम् जी
Deleteफ़िर भी झुक जाती हमेशा वो
ReplyDeleteअपनों की खुशियों के बोझ तले
रो लेती मन ही मन होंठों पर मुस्कान लिए
रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, सखी
बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मार्मिक भावाभिव्यक्ति !!!
हार्दिक आभार आदरणीया
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