Tuesday, April 30, 2019

ख्व़ाहिशों के झरोखों से

ख्व़ाहिशों के झरोखों से
झाँकती उम्मीद भरी आँखें
वक़्त की धूप में मुरझाया चेहरा
फ़िर भी होंठों पर मुस्कान लिए

कर्मशील व्यक्तित्व के साथ
सबकी खुशियों में अपने सपने ख़ोजती
सहनशीलता की बनकर मूरत 
ख़ुद की पहचान को भूलती जाती

रिश्तों की बनकर जन्मदात्री
उपेक्षा के अँधेरों को झेलती
प्रताड़ना सहती फ़िर भी हँसती 
अपने वजूद को कायम रखती

जानती है खूब नहीं निर्भर किसी पर
अगर वो जिद्द अपनी ठान ले
हौसले की उडान भरकर
ख्वाहिशों को हाथों से थाम ले 

फ़िर भी झुक जाती हमेशा वो
अपनों की खुशियों के बोझ तले
रो लेती मन ही मन होंठों पर मुस्कान लिए
रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. ख्व़ाहिशों के झरोखों के बहानेनिःशब्द करती लाइन...कुछ नहीं बाकी बचा कहने को.
    बेहद खूबसूरत ....
    आप की इस रचना में खास यह पंक्तियाँ बहुत पसंद आई है
    रिश्तों की बनकर जन्मदात्री
    उपेक्षा के अँधेरों को झेलती
    प्रताड़ना सहती फ़िर भी हँसती
    अपने वजूद को कायम रखती

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार संजय जी

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    1. सहृदय आभार सुमन जी

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  3. ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!

    ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. फ़िर भी झुक जाती हमेशा वो
    अपनों की खुशियों के बोझ तले
    रो लेती मन ही मन होंठों पर मुस्कान लिए
    रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, सखी

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  5. बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
    सादर

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  6. रख देती ख्व़ाबों को कर्त्तव्य के बोझ तले...

    बहुत सुंदर, मार्मिक भावाभिव्यक्ति !!!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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