Tuesday, May 21, 2019

अरमानों का गलीचा

अरमानों का गलीचा बिछाए
आशा की किरण मन में जलाए
झांकती रहीं बूढ़ी आँखें
अकेली खड़ी खिड़की से
मन में ढेरों सपने सजाए
पैरों की आहट चूड़ी की खनक
शायद खत में आए कोई खबर
मायूस होकर बैठ जाती
पुराने सपनों में खो जाती
अभी कहीं से आवाज़ देगा
बेटा पुकारेगा माँ कहकर
दौड़कर आएगा लगाएगा गले 
सोचकर मुस्काई नम आँख लिए
पर धोखा खाकर अकेली पड़ी
आस अब कहां पूरी होगी
बुढ़ापे की जो लाठी थी
भीड़ में पहले ही कहीं खो गई
फिर भी उम्मीद लगाए बैठी
शायद कोई याद बचपन की
या माँ के आँचल की खुशबू
बेचैन कर दें लौट आने को
भूल जाऊँगी सारी बातें
अपने गोदी के लाल की
अरमानों का गलीचा बिछाए
बैठी रहूँगी मैं इसी आस में
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. नौनिहाल की बहुत शर्मनाक हरक़त !
    वो न आएगा पलट कर, चाहे लाख माँ बुलाए !

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  2. शायद कोई याद बचपन की
    या माँ के आँचल की खुशबू
    बेचैन कर दें लौट आने को
    भूल जाऊँगी सारी बातें
    अपने गोदी के लाल की
    बहुत प्यारी और दिल को छु लेने वाली रचना सखी

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  3. बहुत सुन्दर दिल को छू लेने वाली मासूम रचना
    सादर

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  4. बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना सखी ।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी

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  5. प्रिय अनुराधा बहन -- -- किसी विकल माँ के मनोभावों को बहुत ही मार्मिकता से उकेरा है आपने | अरमानों के इस गलीचे की कीमत काश निष्ठुर बेटा समझ पाए | मन में करुणा का भाव जगाती है रचना| सस्नेह सखी |

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय आभार यशोदा जी

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  7. किस मीत का संग हो, तो घास के हरे ग़लीचे से खूबसूरत और कुछ भी नहीं।
    तभी अरमानों का ग़लीचा सजता है।
    बहुत सुंदर रचना।
    प्रणाम।

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  8. मन तार तार हो गया पर आस नही टूटी और शायद अंतिम पल तक ना टूटे पर ऐसे निर्मोही क्यों आने लगे ।
    बहुत मर्मस्पर्शी रचना ।

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    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी

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  9. भूल जाऊँगी सारी बातें
    अपने गोदी के लाल की
    अरमानों का गलीचा बिछाए
    बैठी रहूँगी मैं इसी आस में
    माँ की ममता और आशा कभी खत्म नहीं होती...
    बहुत ही शानदार।

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