अरमानों का गलीचा बिछाए
आशा की किरण मन में जलाए
झांकती रहीं बूढ़ी आँखें
अकेली खड़ी खिड़की से
मन में ढेरों सपने सजाए
पैरों की आहट चूड़ी की खनक
शायद खत में आए कोई खबर
मायूस होकर बैठ जाती
पुराने सपनों में खो जाती
अभी कहीं से आवाज़ देगा
बेटा पुकारेगा माँ कहकर
दौड़कर आएगा लगाएगा गले
सोचकर मुस्काई नम आँख लिए
पर धोखा खाकर अकेली पड़ी
आस अब कहां पूरी होगी
बुढ़ापे की जो लाठी थी
भीड़ में पहले ही कहीं खो गई
फिर भी उम्मीद लगाए बैठी
शायद कोई याद बचपन की
या माँ के आँचल की खुशबू
बेचैन कर दें लौट आने को
भूल जाऊँगी सारी बातें
अपने गोदी के लाल की
अरमानों का गलीचा बिछाए
बैठी रहूँगी मैं इसी आस में
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
नौनिहाल की बहुत शर्मनाक हरक़त !
ReplyDeleteवो न आएगा पलट कर, चाहे लाख माँ बुलाए !
शायद कोई याद बचपन की
ReplyDeleteया माँ के आँचल की खुशबू
बेचैन कर दें लौट आने को
भूल जाऊँगी सारी बातें
अपने गोदी के लाल की
बहुत प्यारी और दिल को छु लेने वाली रचना सखी
सहृदय आभार सखी
Deleteबहुत सुन्दर दिल को छू लेने वाली मासूम रचना
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना सखी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteप्रिय अनुराधा बहन -- -- किसी विकल माँ के मनोभावों को बहुत ही मार्मिकता से उकेरा है आपने | अरमानों के इस गलीचे की कीमत काश निष्ठुर बेटा समझ पाए | मन में करुणा का भाव जगाती है रचना| सस्नेह सखी |
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसहृदय आभार यशोदा जी
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ReplyDeleteकिस मीत का संग हो, तो घास के हरे ग़लीचे से खूबसूरत और कुछ भी नहीं।
तभी अरमानों का ग़लीचा सजता है।
बहुत सुंदर रचना।
प्रणाम।
मन तार तार हो गया पर आस नही टूटी और शायद अंतिम पल तक ना टूटे पर ऐसे निर्मोही क्यों आने लगे ।
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी
Deleteभूल जाऊँगी सारी बातें
ReplyDeleteअपने गोदी के लाल की
अरमानों का गलीचा बिछाए
बैठी रहूँगी मैं इसी आस में
माँ की ममता और आशा कभी खत्म नहीं होती...
बहुत ही शानदार।
सस्नेह आभार सखी
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