एक पहेली के जैसी लगती है
ज़िंदगी भी कभी-कभी
जितना सुलझाना चाहो
उतना ही उलझती जाती है
कभी मखमली अहसास देती
उड़ने लगती है आसमान में
खूबसूरत रंग भरने लगती
तो कभी धरातल पर लाकर
अपनी सच्चाई दिखाती है
थक जाती है ज़िंदगी भी
दायित्वों का निर्वाह करते
चाहती कुछ पल शांति के कहीं
पर कहाँ मिलता है आराम
मौत से पहले ज़िंदगी में
परिस्थितियों से मजबूर हो
जुटे रहते हैं सब काम में
कुछ ऐसे लोग भी हैं यहाँ
जिन्हें तलाश है काम की
पर फ़िर भी कोई काम नहीं मिलता
ज़िंदगी इतनी सरल कहाँ है
चक्रव्यूह-सा रचती रहती है
यह ज़िंदगी सबके इर्दगिर्द
हम अभिमन्यु की तरह
लगे रहते हैं भेदने मुश्किलों को
तब तक उमर बीत जाती है
ज़िंदगी चल देती है मौत की गली
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
कैसी पहेली जिंदगानी।
ReplyDeleteवाह्ह्ह सार्थक चिंतन सखी ।
बहुत बहुत आभार प्रिय सखी
Deleteहम अभिमन्यु की तरह
ReplyDeleteलगे रहते हैं भेदने मुश्किलों को
तब तक उमर बीत जाती है
ज़िंदगी चल देती है मौत की गली
बहुत ही सटिक अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
हार्दिक आभार प्रिय ज्योती बहन
Deleteवाह!!बहुत सुंदर प्रिय सखी अनुराधा जी । सही में.जिंदगी पहेली ही है ।
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 29 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी
Deleteएक पहेली के जैसी लगती है
ReplyDeleteज़िंदगी भी कभी-कभी
जितना सुलझाना चाहो
उतना ही उलझती जाती है
कभी मखमली अहसास देती
उड़ने लगती है आसमान में
खूबसूरत रंग भरने लगती.... बहुत ही सुन्दर प्रिय सखी
सादर
सहृदय आभार सखी
Deleteकभी मखमली अहसास देती
ReplyDeleteउड़ने लगती है आसमान में
खूबसूरत रंग भरने लगती
तो कभी धरातल पर लाकर
अपनी सच्चाई दिखाती है
बहुत सुंदर .....
हार्दिक आभार सखी
Deleteसच में जिंदगी है तो बिलकुल चक्रव्यूह जैसे चुनौती पर हर एक संघर्ष करता है कुछ पाने को, जो निराश हो कर इसे तोड़ना नहीं चाहता है या तोड़ देता है वह बुजदिल होता है!
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteजी सचमुच
ReplyDeleteएक चक्रव्यूह सी है जिंदगी
हम अभिमन्ययु की भांति ही इसे भेदना नही जानते।
💐💐
हार्दिक आभार आदरणीय
DeletePoet hi hai
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