Monday, May 27, 2019

ज़िंदगी एक चक्रव्यूह

एक पहेली के जैसी लगती है
 ज़िंदगी भी कभी-कभी
जितना सुलझाना चाहो
उतना ही उलझती जाती है
कभी मखमली अहसास देती
उड़ने लगती है आसमान में
खूबसूरत रंग भरने लगती 
तो कभी धरातल पर लाकर
अपनी सच्चाई दिखाती है
थक जाती है ज़िंदगी भी
दायित्वों का निर्वाह करते
चाहती कुछ पल शांति के कहीं
पर कहाँ मिलता है आराम
मौत से पहले ज़िंदगी में
परिस्थितियों से मजबूर हो
जुटे रहते हैं सब काम में
कुछ ऐसे लोग भी हैं यहाँ
जिन्हें तलाश है काम की 
पर फ़िर भी कोई काम नहीं मिलता
ज़िंदगी इतनी सरल कहाँ है 
चक्रव्यूह-सा रचती रहती है
यह ज़िंदगी सबके इर्दगिर्द 
हम अभिमन्यु की तरह 
लगे रहते हैं भेदने मुश्किलों को
तब तक उमर बीत जाती है
ज़िंदगी चल देती है मौत की गली
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. कैसी पहेली जिंदगानी।
    वाह्ह्ह सार्थक चिंतन सखी ।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय सखी

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  2. हम अभिमन्यु की तरह
    लगे रहते हैं भेदने मुश्किलों को
    तब तक उमर बीत जाती है
    ज़िंदगी चल देती है मौत की गली
    बहुत ही सटिक अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।

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    1. हार्दिक आभार प्रिय ज्योती बहन

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  3. वाह!!बहुत सुंदर प्रिय सखी अनुराधा जी । सही में.जिंदगी पहेली ही है ।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 29 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी

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  5. एक पहेली के जैसी लगती है
    ज़िंदगी भी कभी-कभी
    जितना सुलझाना चाहो
    उतना ही उलझती जाती है
    कभी मखमली अहसास देती
    उड़ने लगती है आसमान में
    खूबसूरत रंग भरने लगती.... बहुत ही सुन्दर प्रिय सखी
    सादर

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  6. कभी मखमली अहसास देती
    उड़ने लगती है आसमान में
    खूबसूरत रंग भरने लगती
    तो कभी धरातल पर लाकर
    अपनी सच्चाई दिखाती है
    बहुत सुंदर .....

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  7. सच में जिंदगी है तो बिलकुल चक्रव्यूह जैसे चुनौती पर हर एक संघर्ष करता है कुछ पाने को, जो निराश हो कर इसे तोड़ना नहीं चाहता है या तोड़ देता है वह बुजदिल होता है!

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    1. जी आपका बहुत बहुत आभार

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  8. जी सचमुच

    एक चक्रव्यूह सी है जिंदगी
    हम अभिमन्ययु की भांति ही इसे भेदना नही जानते।

    💐💐

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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