Saturday, May 25, 2019

जीवन की पारी


ज़िंदगी के खेल में
कभी हारते कभी जीतते
देखें जीवन के रंग अनेक
जन्म लेता है मानव
जीवन की पहली पारी में
असहाय सा पड़ा
कभी रोकर कभी हँसकर
अपने भावों को व्यक्त करता
खिलौने की तरह
कभी इस गोद कभी उस गोद
प्यार के साए में बढ़ता
थोड़ा बड़ा होते ही
दूसरी पारी शुरू होते ही
जुड़ने लगती माँ-बाप की इच्छाएँ
कंधों पर बस्ते का बोझ
बचपन कहीं गुम होने लगता
प्रथम आने की सबको आस रहती
तीसरी पारी में
मंज़िल की तलाशते
सपनों को पूरा करने
निकल पड़ते घर से दूर
तकलीफों को सहकर सफल होते
घर बसाकर जीवन की नई शुरुआत करते
चौथी पारी में
अपने सपने तो कहीं दफ़न हो जाते
बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने में
माता-पिता को खुश करने में
रिश्तों को टूटते हुए देख 
खुद को हारता महसूस करते
अंतिम पारी में
एक बार फिर असहाय से पड़े
कभी रोकर कभी हँसकर
अपने भावों को व्यक्त करते
कभी प्यार कभी तिरस्कार सहते
एक बोझ के जैसे 
जीवन को लगते हारने
ज़िंदगी के खेल निराले होते हैं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. अनुराधा दी,जीवन यात्रा का बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया हैं आपने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार ज्योती बहन

      Delete
  2. जीवन चक्र का बहुत खूबसूरत वर्णन 👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार सुधा जी

      Delete
  3. Replies
    1. सहृदय आभार भारती जी

      Delete
  4. हार्दिक आभार अमित जी

    ReplyDelete
  5. जीवन के सभी पड़ावों का बखूबी चित्रण सखी अप्रतिम रचना।

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन रचना प्रिय सखी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार प्रिय सखी

      Delete
  7. बहुत सुंदर शब्दांकन 👌👌👍👏👏👏😊

    ReplyDelete