Wednesday, May 22, 2019

जीवन नैया

विचारों के गहरे सागर में
गोते खाती जीवन की नाव
अंतर्मन में उठते सवालों के
थपेड़ो से डूबती-उतराती

कभी खुशियों के किनारे लगती
कभी मन के झंझावातों में फस
वहीं गोल-गोल घूमती रहती 
आस नहीं छोड़ती तूफ़ानों से लड़ती

लालसा की लहरों के बीच
जिजीविषा डोलती रहती
संतोष का किनारा पकड़ने की
हरदम नाकाम कोशिश करती

पल-पल सुलगती रहती
अथक परिश्रम कर के भी 
जिजीविषा खुशी के पल ढूँढती
पूरा न होने पे हताशा झेलती

विचारों के सागर से मुक्ति कहां मिलती
एक के बाद एक लहरें टकरातीं
फिर फँसकर मौत के भंवर में
हताश हो जीवन नैया टूटकर बिखरती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

17 comments:

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    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी

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  2. बहुत सुन्दर !
    किनारे पर कश्ती लेकर खड़े रहने तो बहुत बेहतर है - नदी में कश्ती लेकर दूसरे किनारे तक पहुँचने की कोशिश में भंवर में डूबना.

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  3. सुन्दर भाव प्रधान प्रस्तुति

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  4. सहृदय आभार सखी

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  5. बहुत खूबसूरत सृजन सखी !

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  6. बहुत खूबसूरत सृजनात्मकता अनुराधा जी ।

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    1. जी हार्दिक आभार मीना जी

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  8. लालसा की लहरों के बीच
    जिजीविषा डोलती रहती
    संतोष का किनारा पकड़ने की
    हरदम नाकाम कोशिश करती
    बहुत सटीक.....
    बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
    वाह!!!

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  9. जिजीविषा डोलती रहती
    संतोष का किनारा पकड़ने की
    हरदम नाकाम कोशिश करती

    बहुत ही सुंदर रचना सखी ,सादर नमन

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  10. हार्दिक आभार आदरणीय

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