विचारों के गहरे सागर में
गोते खाती जीवन की नाव
अंतर्मन में उठते सवालों के
थपेड़ो से डूबती-उतराती
कभी खुशियों के किनारे लगती
कभी मन के झंझावातों में फस
वहीं गोल-गोल घूमती रहती
आस नहीं छोड़ती तूफ़ानों से लड़ती
लालसा की लहरों के बीच
जिजीविषा डोलती रहती
संतोष का किनारा पकड़ने की
हरदम नाकाम कोशिश करती
पल-पल सुलगती रहती
अथक परिश्रम कर के भी
जिजीविषा खुशी के पल ढूँढती
पूरा न होने पे हताशा झेलती
पल-पल सुलगती रहती
अथक परिश्रम कर के भी
जिजीविषा खुशी के पल ढूँढती
पूरा न होने पे हताशा झेलती
विचारों के सागर से मुक्ति कहां मिलती
एक के बाद एक लहरें टकरातीं
फिर फँसकर मौत के भंवर में
हताश हो जीवन नैया टूटकर बिखरती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद रवीन्द्र जी
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteकिनारे पर कश्ती लेकर खड़े रहने तो बहुत बेहतर है - नदी में कश्ती लेकर दूसरे किनारे तक पहुँचने की कोशिश में भंवर में डूबना.
सहृदय आभार आदरणीय
Deleteसुन्दर भाव प्रधान प्रस्तुति
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सृजन सखी !
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत खूबसूरत सृजनात्मकता अनुराधा जी ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार मीना जी
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- ३ (चर्चा अंक - ३५७७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
धन्यवाद बहना 🌹
Deleteलालसा की लहरों के बीच
ReplyDeleteजिजीविषा डोलती रहती
संतोष का किनारा पकड़ने की
हरदम नाकाम कोशिश करती
बहुत सटीक.....
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteजिजीविषा डोलती रहती
ReplyDeleteसंतोष का किनारा पकड़ने की
हरदम नाकाम कोशिश करती
बहुत ही सुंदर रचना सखी ,सादर नमन
हार्दिक आभार सखी
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
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