मिटी वसुधा की प्यास
झूमकर बरसे बदरा
झूमकर बरसे बदरा
थिरकती बूँदें धरती पर
तन को देती शीतलता
भीगे फुहारों में तन-मन
बूँदों का धरती पे नर्तन
बूँदों का धरती पे नर्तन
बारिश की झूमती हवाओं में
मन झूमे घनी घटाओं में
जलते आषाढ़ अब निकल गए
सावन झर-झर बरस उठे
झुलसाती तपिश मिटने लगी
धरती पे हरियाली खिलने लगी
कुछ यादें लेकर सावन की
कुछ बातें ले मनभावन-सी
कहीं मन में छुपी कसक बरस गई
विरहन भी दर्द में तड़प गई
कुछ यादें लेकर सावन की
कुछ बातें ले मनभावन-सी
कहीं मन में छुपी कसक बरस गई
विरहन भी दर्द में तड़प गई
घनघोर घटाओं का उठता शोर
मेघों को देख नाच उठे मोर
झूमती पुरवा भी लहराई
संग मिट्टी की सौंधी महक लाई
संग मिट्टी की सौंधी महक लाई
आगाज़ हुआ सावन आया
जनजीवन भीगकर हर्षाया
चपला चमके, तड़के, गरजे
झूम झूमकर बदरा बरसे
जनजीवन भीगकर हर्षाया
चपला चमके, तड़के, गरजे
झूम झूमकर बदरा बरसे
***अनुराधा चौहान***
हार्दिक आभार श्वेता जी
ReplyDeleteआह्लाद जगाती सुंदर रचना सखी ।
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