Thursday, December 12, 2019

अलाव

अलाव की गर्मी से
राहत पाने की आशा में
ठिठुरता बचपन
पिता की आगोश में छुपा
धरती के बिछौने पर
खुले अम्बर के नीचे
एक ही चादर में लिपटा
शीतलहर से बचने का
अथक प्रयास करता
मौसम पे भला किसी का
क्या चला है जोर
भोर की धूप संग ठिठुरते
घर-आँगन चौबारे में 
अलाव के सामने
हाथों को सेंकते 
लोगों की टोली बैठ जाती
सुबह की चाय की चुस्की के साथ
गपशप करते
 बातों से सर्दी के अहसास
बांटने में लगे रहते
बढ़ती ठंड का बखान कर 
मौसम का हाल
बताने के साथ 
शुरू हो जाते अपनी दिनचर्या में
गुजरते दिन की तरह
गुजर रहे वर्ष के सफ़र का
लेकर खट्टा-मीठा चिट्ठा
एक और साल
फिर बीत चला है
दिसम्बर विदाई को
सजने लगा है 
नया साल ले आ रहा
घने कुहासे की सौगात
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

17 comments:

  1. मूउसम के इस बदलाव को ... कोहरे भरे दिन को ... स्मोग से लिपटे शहर को बाखूबी इस मौसम को लिखा है आपने ... बहुत खूब ...

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  2. लाजवाब प्रस्तुति

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  3. बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमन

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  4. वाह बेहद खूबसूरत रचना।सादर

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    1. हार्दिक आभार सुजाता जी

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  5. गांव के घर-आंगन और खेत-खलिहानों में जलते अलाव और आस-पास बैठे लोग ...चलचित्र से घूम गए आँखों के
    सामने .. बहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  7. शानदार जीवंत चित्रण

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  8. अलाव सेंकते गाँव के लोगों का बहुत ही सुन्दर शब्दचित्रण...
    वाह!!!

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  9. सुंदर हृदय स्पर्शी रचना सखी।

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