अलाव की गर्मी से
राहत पाने की आशा में
ठिठुरता बचपन
पिता की आगोश में छुपा
धरती के बिछौने पर
खुले अम्बर के नीचे
एक ही चादर में लिपटा
शीतलहर से बचने का
अथक प्रयास करता
मौसम पे भला किसी का
क्या चला है जोर
भोर की धूप संग ठिठुरते
घर-आँगन चौबारे में
अलाव के सामने
हाथों को सेंकते
लोगों की टोली बैठ जाती
सुबह की चाय की चुस्की के साथ
गपशप करते
बातों से सर्दी के अहसास
बांटने में लगे रहते
बढ़ती ठंड का बखान कर
मौसम का हाल
बताने के साथ
शुरू हो जाते अपनी दिनचर्या में
गुजरते दिन की तरह
गुजर रहे वर्ष के सफ़र का
लेकर खट्टा-मीठा चिट्ठा
एक और साल
फिर बीत चला है
दिसम्बर विदाई को
सजने लगा है
नया साल ले आ रहा
घने कुहासे की सौगात
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
मूउसम के इस बदलाव को ... कोहरे भरे दिन को ... स्मोग से लिपटे शहर को बाखूबी इस मौसम को लिखा है आपने ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteलाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteअप्रतिम प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह बेहद खूबसूरत रचना।सादर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुजाता जी
Deleteगांव के घर-आंगन और खेत-खलिहानों में जलते अलाव और आस-पास बैठे लोग ...चलचित्र से घूम गए आँखों के
ReplyDeleteसामने .. बहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteशानदार जीवंत चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteअलाव सेंकते गाँव के लोगों का बहुत ही सुन्दर शब्दचित्रण...
ReplyDeleteवाह!!!
सुंदर हृदय स्पर्शी रचना सखी।
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