37
धरती
नीले अम्बर की छटा,छटा अंँधेरा दूर।
सूरज सागर से मिला,धरती से अति दूर।
धरती से अति दूर,क्षितिज से मिलता सागर।
दिखता अनुपम दृश्य, सूर्य भरता है गागर।
कहती अनु यह देख,रंग चमके चमकीले।
धरती आभा हरित,गगन सागर हैं नीले।
38
मानव
मानव माया में फँसा,भूला ममता प्यार।
अपनों का बैरी बना,पाले मतलबी यार।
पाले मतलबी यार,मिटा अपनों का साया।
करता अत्याचार,घिरा परदेशी माया।
कहती अनु यह देख,बना मानव अब दानव।
भूला अपनी प्रीत, मतलबी बनता मानव।
39
छाया
छाया तरुवर की सदा,छाए चारों ओर।
चहके चिड़िया नीड़ में,उजली सुंदर भोर।
उजली सुंदर भोर,रहे हरियाली धरती।
कलियाँ बनती फूल,महक जीवन में भरती।
कहती अनु सुन आज,बड़ी सुंदर यह माया।
चलो लगाएं पौध,मिले तरुवर की छाया
40
निर्मल
निर्मल बहती जो नदी,दलदल बनती आज।
मानव कारण है बना,करके उलटे काज।
करके उलटे काज,बनते प्रकृति के दुश्मन।
जंगल हुए उजाड़,उतने ही बढ़ते व्यसन।
कहती अनु यह देख,धरा होती है निर्जल।
रोको महाविनाश,नदी फिर बहती निर्मल।
41
सरिता
सागर से सरिता मिले,होके एकाकार।
जीवन को संदेश दें,भूलो सभी विकार।
भूलो सभी विकार,नहीं सम होते प्राणी।
कड़वे मीठे बोल,कहीं मिसरी सी वाणी।
कहती अनु सुन आज,अहं की खाली गागर।
दिल में भर लो प्रीत,हृदय करुणा का सागर।
42
गागर
गागर लेकर गोपियाँ,भरती शीतल नीर।
जल में फिर क्रीड़ा करें,तट पर धर कर चीर।
तट पर धर कर चीर,वसन सब हरे मुरारी।
चढ़े कदम की डाल,लजाएं सखियाँ सारी।
विनती करती साथ,सुनो हे गिरधर नागर।
अब न करेंगे भूल,लाज की छलके गागर।
*** अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
धरती
नीले अम्बर की छटा,छटा अंँधेरा दूर।
सूरज सागर से मिला,धरती से अति दूर।
धरती से अति दूर,क्षितिज से मिलता सागर।
दिखता अनुपम दृश्य, सूर्य भरता है गागर।
कहती अनु यह देख,रंग चमके चमकीले।
धरती आभा हरित,गगन सागर हैं नीले।
38
मानव
मानव माया में फँसा,भूला ममता प्यार।
अपनों का बैरी बना,पाले मतलबी यार।
पाले मतलबी यार,मिटा अपनों का साया।
करता अत्याचार,घिरा परदेशी माया।
कहती अनु यह देख,बना मानव अब दानव।
भूला अपनी प्रीत, मतलबी बनता मानव।
39
छाया
छाया तरुवर की सदा,छाए चारों ओर।
चहके चिड़िया नीड़ में,उजली सुंदर भोर।
उजली सुंदर भोर,रहे हरियाली धरती।
कलियाँ बनती फूल,महक जीवन में भरती।
कहती अनु सुन आज,बड़ी सुंदर यह माया।
चलो लगाएं पौध,मिले तरुवर की छाया
40
निर्मल
निर्मल बहती जो नदी,दलदल बनती आज।
मानव कारण है बना,करके उलटे काज।
करके उलटे काज,बनते प्रकृति के दुश्मन।
जंगल हुए उजाड़,उतने ही बढ़ते व्यसन।
कहती अनु यह देख,धरा होती है निर्जल।
रोको महाविनाश,नदी फिर बहती निर्मल।
41
सरिता
सागर से सरिता मिले,होके एकाकार।
जीवन को संदेश दें,भूलो सभी विकार।
भूलो सभी विकार,नहीं सम होते प्राणी।
कड़वे मीठे बोल,कहीं मिसरी सी वाणी।
कहती अनु सुन आज,अहं की खाली गागर।
दिल में भर लो प्रीत,हृदय करुणा का सागर।
42
गागर
गागर लेकर गोपियाँ,भरती शीतल नीर।
जल में फिर क्रीड़ा करें,तट पर धर कर चीर।
तट पर धर कर चीर,वसन सब हरे मुरारी।
चढ़े कदम की डाल,लजाएं सखियाँ सारी।
विनती करती साथ,सुनो हे गिरधर नागर।
अब न करेंगे भूल,लाज की छलके गागर।
*** अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
एक से बढ़कर यह लाज़बाब कुड़लियाँ सखी ,बहुत खूब ....
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह!सखी ,बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
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