86
आतुर
होता आतुर मन कभी,बैठ करो फिर ध्यान।
पूजा करने से मिले,जप शान्ति और ज्ञान।
जप शान्ति और ज्ञान,हटे मन के सब अवगुण।
मिटते मन के त्रास,मिले तब सुख और सगुण,
कहती अनु सुन बात,कभी मन दुख में रोता।
करो भजन श्री राम, नहीं मन आतुर होता।
87
आभा
खिलती कलियाँ देख के,चिड़ियाँ चहकी डाल।
देख सजीली वाटिका,हँसते नन्हें बाल।
हँसते नन्हें बाल,गली में भागे दौड़े।
चारों ओर उजास,चले सब आलस छोड़े।
कहती अनु यह देख,हवा भी ठंडी चलती।
लाली अम्बर लाल,तभी सब कलियाँ खिलती।
88
चितवन
राधा कान्हा से लड़ी,बैठी यमुना घाट।
तिरछी चितवन देख के,कान्हा पहुँचे हाट।
कान्हा पहुँचे हाट,सखी हैं गोपी सारी।
करें ठिठोली साथ,सुनी जब राधा रानी।
दौड़ी कान्हा पास,जलाते जी क्यों आधा।
मेरा क्या अपराध,बता ये पूछे राधा।
89
मोहक
जैसा मोहक रूप है,वैसे मोहक भाव।
रघुकुल नन्दन हैं जहाँ,दुख का सदा अभाव।
दुख का सदा अभाव,मिले हैं शीतल छाया।
मुख पे तेज प्रताप, बड़ी सुंदर यह माया।
कहती अनु यह देख,लगे दिल में डर कैसा।
रघुकुल नन्दन साथ,मिले सुख मन के जैसा।
90
शीतल
शीतल छाया दे सदा,मात-पिता का साथ।
कोई साथ न छोड़ना,पकड़े रखना हाथ।
पकड़े रखना हाथ,कभी नहीं दुख सताए।
देकर उनको त्रास,अभी क्यों हो पछताए।
कहती अनु यह देख,चमक हो जैसे पीतल।
जीवन दाता साथ,रहे मन हर पल शीतल।
91
हारा
सारा जीवन बैठ के,किया गज़ब आराम।
हारा सारा चैन फिर ,लेता कान्हा नाम।
लेता कान्हा नाम,नहीं आएँ अब कृष्णा।
खो बैठे अब चैन,तभी क्यों पाली तृष्णा।
कहती अनु सुन बात,नहीं है जीवन हारा।
अब करले कुछ काम,पड़ा है जीवन सारा।
अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
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