Wednesday, March 25, 2020

अधीर मत हो मन

अधीर मत हो मन
फिर खिल उठेगा चमन
बस हौसला बनाए रख
कठिन है यह अग्निपथ
अपने बढ़ते कदम रोक लें
तूफानों की राह मोड़ दें
आओ एकजुट होकर सभी
नियम यह पालन करें
मानवता की भलाई में
एक ही प्रार्थना करें
पग बिछे कंटक हटे
हम यह जंग जीत ले
परिस्थितियाँ विकट है
 निराश होकर डर मत
कठिन घड़ी भले समीप
मानवता के हित की
विजय फिर जरूर है
फिर शुरू होगी हलचल
मानव के कदमों की
आशा की ज्योति जलाकर
संयम रखें,स्वस्थ रहें
_अनुराधा चौहान ✍️
चित्र गूगल से साभार

Friday, March 20, 2020

ध्वजा तिरंगा

आशा भरी भोर फिर से 
खुशियों के संग खिलेगी।
वीर पुत्रों की हूँ जननी
सदियों तक धरा कहेगी

चलो मिटाले बैर भाव
गले लगाएं अपनो को
मानवता को आज जगा
सफल बनाएं सपनों को।
 जात-पात के भेद मिटे
तब ये चिंगारी बुझेगी‌।
वीर पुत्रों .....

हवा एक झूठ उड़ी तो
खींचतान हर ओर मची।
 स्वार्थ की विष बेल फली
भावनाएं कहीं न बची।
देशप्रेम नस-नस दौड़े
कब ये फिर हवा बहेगी
वीर पुत्रों.....

ध्वज तिरंगा मान अपना
भूलों को याद दिलाना।
एकता पहचान रही है
 कोई मत इसे भुलाना।
फिर तिरंगा हाथ लेकर 
 खुशियों की लहर चलेगी।
वीर पुत्रों......  
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, March 13, 2020

साथी जन्मों के

भूले से कभी भूल हो
तो भूल नहीं जाना।
साथी मेरे जन्मों के
मेरा साथ निभाना।

इस दिल की गहराई में
बस धड़कन ये कहती।
बदले मौसम तुम बदले
ये पायल भी कहती।
हौले बहती पुरवाई
नवगीत गुनगुनाना।
भूले से कभी भूल हो
तो भूल नहीं जाना।

साथी मेरे जन्मों के
मेरा साथ निभाना।

चूड़ी खनकी खन से ये
बिंदिया है दमकती।
सुन-सुन ये बातें सखियाँ 
छुप-छुपकर हैं हँसती।
पलछिन बीते दिन रातें
सुन के नया बहाना।
भूले से कभी भूल हो
तो भूल नहीं जाना।

साथी मेरे जन्मों के
मेरा साथ निभाना।

छोटी-छोटी बातों को
मन में कभी न रखना।
जीवन में कड़वे-मीठे
अनुभव सब हैं चखना।
मन में कोई बाते ले
यूँ हीं रूठ न जाना।
भूले से कभी भूल हो
तो भूल नहीं जाना।

साथी मेरे जन्मों के
मेरा साथ निभाना।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, March 12, 2020

कोरोना

कोरोना कहता है सबसे,
दूर से करो नमस्कार।
काहे भूले तुम अपने,
पुरखों के दिए संस्कार।

शाकाहारी पदार्थों का,
खूब तुम सेवन करो।
मांसाहार से रखो दूरी,
दूध-दही सेवन करो।
हाथ जोड़ स्वागत करो,
गले लगाना है बेकार।
काहे भूले तुम अपने
पुरखों के दिए संस्कार

कोरोना कहता है सबसे,
दूर से करो नमस्कार।

बाहर से जब घर आना,
हाथ साफ ज़रूर धोना।
स्वच्छता से खाना-पीना,
स्वच्छता समीप रखना।
खूब जलाओ धूप-दीप,
कर्पूर का धुआँ घर द्वार।
काहे भूले तुम अपने
पुरखों के दिए संस्कार

कोरोना कहता है सबसे,
दूर से करो नमस्कार।


सर्दी खाँसी की दवा करो
नाखून रखो हरदम साफ
अनदेखी करने वालों को
कोरोना नहीं करता माफ़
अफवाहों पर ध्यान न देना
यह डराती हैं बेकार
काहे भूले तुम अपने
पुरखों के दिए संस्कार

कोरोना कहता है सबसे
दूर से करो नमस्कार।।
***अनुराधा चौहान*** 

Saturday, March 7, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--16

92
जीता
जीता मानव दंभ में,पाले झूठे यार।
जीता है जीवन वही,जिसने जीता प्यार।
जिसने जीता प्यार,बना वो सबका प्यारा।
अपने रहते साथ,लगे वो सबको न्यारा।
कहती अनु सुन बात,यही कहती है गीता।
करता अच्छे काम,तभी सुख मानव जीता।

93
नारी
नारी माँगे है सदा,जग में अपना मान।
बदले में करती सदा,सबका ही सम्मान।
सबका ही सम्मान,समझ नारी की पीड़ा।
ममता मूरत मान,उठा लेती हर बीड़ा।
कहती अनु सुन आज,सदा ही सब पे भारी।
 दुर्गा काली रूप,नहीं डरती अब नारी।

94
साहस
मन में साहस हो अगर,हर मुश्किल आसान।
साहस के दम पर सदा,बनती है पहचान।
बनती है पहचान,जहाँ वीरों को मानें।
कायर है नाकाम,सभी साहस पहचानें।
कहती अनु सुन बात,भरो साहस से जीवन।
कर लो ऊँचा नाम,खुशी से झूमे फिर मन।


95
नटखट
नटखट नन्हा लाड़ला,नागर नंद किशोर,
 यशुमति नंदन के सखा, मटकी तोड़े भोर।
मटकी तोड़े भोर,दही माखन वो खाते।
गोपी करती क्रोध,हँसी होंठों पे लाते।
कहती अनु यह देख,करे मटकी से खट खट।
नटवर नागर नंद,लला है कितना नटखट।

96
अंकुश
अंकुश नारी पे लगा,छीना उसका चैन।
बेड़ी पैरों में पड़ी, होती थी बेचैन।
होती थी बेचैन,छिनी सुख सुविधा सारी।
बदला उसने रूप,दिखा दी ताकत नारी।
कहती अनु यह देख,चले न शासन निरंकुश।
नारी बदले सोच,हटा ऊपर से अंकुश।

97
चंदन
चंदन माथे पे लगा,माला पकड़ी हाथ।
वामन अवतार श्री प्रभू, लकड़ी छत्री साथ।
लकड़ी छत्री साथ,चले जगतारण सारा।
अद्भुत यह अवतार,बली को पग से तारा।
कहती अनु हरि रूप,करो नित इनका वंदन।
श्री हरि पूजो रोज,लगा नित माथे चंदन।

98
थोड़ा
थोड़ा समय बिताइए,मात-पिता के साथ।
मिलता है किस्मत से,इनका सिर पे हाथ।
इनका सिर पर हाथ,नहीं कोई विपदा घेरे।
चहके आँगन द्वार,खुशी के लगते फेरे।
कहती अनु यह देख,कभी जो दिल को तोड़ा।
फूटा उसका भाग्य,मिटे सुख थोड़ा-थोड़ा।
99
पूरा
करने है पूरा अभी,कई अधूरे काम।
जाने कब ढलने लगे, जीवन की यह शाम।
जीवन की यह शाम,चलो अब डरना कैसा।
जाने दुनिया नाम,बनें कुछ कारण वैसा।
कहती अनु सुन बात,चला क्यों श्रम से डरने।
श्रम से खुश संसार,नहीं बातों के करने।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

अनु की कुण्डलियाँ--15


86
आतुर
होता आतुर मन कभी,बैठ करो फिर ध्यान।
पूजा करने से मिले,जप शान्ति और ज्ञान।
जप शान्ति और ज्ञान,हटे मन के सब अवगुण।
मिटते मन के त्रास,मिले तब सुख और सगुण,
कहती अनु सुन बात,कभी मन दुख में रोता।
करो भजन श्री राम, नहीं मन आतुर होता।

87
आभा
खिलती कलियाँ देख के,चिड़ियाँ चहकी डाल।
देख सजीली वाटिका,हँसते नन्हें बाल।
हँसते नन्हें बाल,गली में भागे दौड़े।
चारों ओर उजास,चले सब आलस छोड़े।
कहती अनु यह देख,हवा भी ठंडी चलती।
लाली अम्बर लाल,तभी सब कलियाँ खिलती।

88
चितवन
राधा कान्हा से लड़ी,बैठी यमुना घाट।
तिरछी चितवन देख के,कान्हा पहुँचे हाट।
कान्हा पहुँचे हाट,सखी हैं गोपी सारी।
करें ठिठोली साथ,सुनी जब राधा रानी।
दौड़ी कान्हा पास,जलाते जी क्यों  आधा।
मेरा क्या अपराध,बता ये पूछे राधा।

89
मोहक
जैसा मोहक रूप है,वैसे मोहक भाव।
रघुकुल नन्दन हैं जहाँ,दुख का सदा अभाव।
दुख का सदा अभाव,मिले हैं शीतल छाया।
मुख पे तेज प्रताप, बड़ी सुंदर यह माया।
कहती अनु यह देख,लगे दिल में डर कैसा।
रघुकुल नन्दन साथ,मिले सुख मन के जैसा।

90
शीतल
शीतल छाया दे सदा,मात-पिता का साथ।
कोई साथ न छोड़ना,पकड़े रखना  हाथ।
पकड़े रखना हाथ,कभी नहीं दुख सताए।
देकर उनको त्रास,अभी क्यों हो पछताए।
कहती अनु यह देख,चमक हो जैसे पीतल।
जीवन दाता साथ,रहे मन हर पल शीतल।

91
हारा
सारा जीवन बैठ के,किया गज़ब आराम।
हारा सारा चैन फिर ,लेता कान्हा नाम।
लेता कान्हा नाम,नहीं आएँ अब कृष्णा।
खो बैठे अब चैन,तभी क्यों पाली तृष्णा।
कहती अनु सुन बात,नहीं है जीवन हारा।
अब करले कुछ काम,पड़ा है जीवन सारा।
अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

अनु की कुण्डलियाँ--14


79
चमका
चम-चम चमकी चाँदनी,चमका चन्दा रात।
चंचल चितवन चंचला,करें चाँद से बात।
करें चाँद से बात,सजे आँखों में सपने।
पूछा करे सवाल, बिछड़ जाते क्यों अपने।
कहती अनु सुन बात,कहे यह पायल छम-छम।
घटे-बढ़े दिनमान,कलाधर करता चम चम।
80

माना
माना इस संसार में,भाँति-भाँति के लोग,
इसका मतलब यह नहीं,चुनो कपट के रोग।
चुनो कपट के रोग,सभी से कड़वा कहना।
मिले न शीतल छाँव,सदा ही जलते रहना।
जीवन की यह रीत,लगा है आना-जाना।
वही सुखी है आज,कर्म को ऊँचा माना।

82
कहना
कहना से मत चूकना,हो कटुु चाहें बात।
झूठी बातों से सदा,लगता मन को घात।
लगता मन को घात, नहीं दुख जाता मन से।
बातों के कटु बाण,जहर से चुभते तन से।
कहती अनु सुन बात,प्रेम से हिलमिल रहना।
रखो न मन में बात,सभी से मीठा कहना।

83
सहना
सहना पड़ता है कभी,अनचाही सी बात।
जिसके कारण ही सदा,बने अजब हालात।
बने अजब हालात,नहीं कोई गलती माने।
करते सदा विवाद,बिना ही सच को जाने।
कहती अनु सुन आज,किसी से तब कुछ कहना।
जब अनुचित हो बात,नहीं फिर चुप हो सहना।

84
वंदन
वंदन श्री हरि का करूँ,कर जोड़ सुबह शाम।
चारों तीरथ सुख मिले,विनती आठों याम।
विनती आठों याम,भजे मन हरि गोपाला।
विट्ठल विट्ठल नाम,मिले सुख जपते माला।
कहती अनु कर जोड़,लगा हरि माथे चंदन।
मिलता चरण निवास,करूँ नित हरि का वंदन।

85
आसन
सोने की मूरत बनी,वामांगी के नाम।
आसन पे बैठी सिया,हवन करें रघुराम,
हवन करें रघुराम,अश्व धरती को नापे।
रघुकुल का प्रतीक,सभी जन थर-थर काँपे।
करने लव-कुश बात,अश्व को चले पकड़ने।
क्यों छोड़ी सिय राम,बनी मूरत फिर सोने।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

अनु की कुण्डलियाँ--13

73
पाना
पाना जीवन में अगर,थोड़ा सा सम्मान।
बदले में देना पड़े,छोटो को भी मान।
छोटो को भी मान,तभी खुशियाँ है मिलती।
बंजर सा हो हृदय,कहाँ फिर कलियाँ खिलती।
कहती अनु सुन बात,बड़ों से यह गुण जाना‌।
जिसका मधुर स्वभाव,उसी को है सुख पाना।

74
खोना
खोना पड़ता है कभी,प्यारा कोई साथ।
आँखों में आँसू भरे,मलते रहते हाथ।
मलते रहते हाथ,जरा भी जोर न चलता‌।
किस्मत है बलवान,ठगा हाथों को मलता।
कहती अनु सुन बात,कभी खोकर मत रोना।
जीवन इसका नाम,कभी पाना औ खोना।

75
यादें
यादें धड़कन हैं बनी,दिल में करती वास।
खट्टे-मीठे रूप में,बनती जीवन आस।
बनती जीवन आस,खुले यादों की खिड़की।
होंठों पे मुसकान,कभी दे कड़वी झिड़की।
कहती अनु सुन आज,चलो कुछ ऐसा गा दें।
भूले बीती बात,कभी सताएंँ न यादें।

76
छोटी
छोटी सी है लाडली,छुप-छुप करती शोर।
माँ को आते देख के,भागे घर की ओर।
भागे घर की ओर,चढ़ी दादा की गोदी।
झूठे आँसू आँख,लिपट दादी से रो दी।
कहती अनु यह देख,करे शैतानी खोटी।
नन्ही सबकी जान, बड़ी प्यारी है छोटी।

77
मीठी
मीठी वाणी से मिटे,मनके कड़वे भाव।
मीठी सी मुस्कान से,भरते मनके हर घाव।
भरते मनके घाव,हरे हर पीड़ा तन की।
सुंदर सरल स्वभाव,मिटे हर बाधा मन की।
कहती अनु सब बैठ,भाव की जला अँगीठी।
रिश्तों को दो आँच,भरो सुगंध मन मीठी।

78
बातें
बातों से बातें बने,बने बहाने चार।
बातों से होती सदा,आपस में तकरार।
आपस में तकरार,बिना सच्चाई जाने।
राई बनी पहाड़,कसे इस उस पे ताने।
कहती अनु कर बात,नहीं यह बीते रातें।
बातों से हल ढूँढ,तभी संभलती बातें।
अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️

अनु की कुण्डलियाँ--12

67
होली
होली देती सीख यह,मिलकर गाओ गीत।
भूलो कड़वाहट सभी, खेलो होली मीत।
खेलो होली मीत,खुशी के रंग में रंग।
खुशियों भरी उमंग,खिले सबके अंग अंग।
कहती अनु यह देख,लगे फिर माथे रोली।
होली भरती प्रीत, बड़ी मन भाती होली।

68
खिलना
खिलना फूलों की तरह,काँटें लेकर हाथ।
जीवन में मिलते सदा,सुख दुख दोनों साथ।
सुख दुख दोनों साथ,यही जीवन का सच है।
सुन यह कड़वे राज,मची मन में हलचल है।
कहती अनु यह देख,नहीं सुख सबको मिलना।
संघर्ष से सुख जीत,तभी फूलों सा खिलना।

69
साजन
साजन मुझको चाहिए,बस थोड़ा सा मान।
दुनिया में मेरी बने,थोड़ी सी पहचान।
थोड़ी सी पहचान,नहीं कुछ माँगू दूजा।
मिले मान सम्मान,बड़ी यह सबसे पूजा।
कहती इतनी बात,नहीं कुछ चाहूँ राजन।
जीवन भर का साथ,यही बस माँगें साजन।

70
सजना
सुंदर सा सजना जरा,पहन नौलखा हार।
आँखों में कजरा लगा,देख जले सब नार।
देख जले सब नार,पहन जब चलती पायल।
कँगना खनके हाथ, हुआ दिल सबका घायल।
कहती अनु मन देख,भाव से भरा समंदर।
सजती है जब नार,नहीं उस जैसा सुंदर।

71
डोरी
डोरी हाथों में बँधे,बन जाती है खास।
बहना की इसमें छुपी,प्यारी-सी है आस।
प्यारी-सी है आस,कभी हमको न भुलाना।
राखी आए पास,बहन से मिलने आना।
अनु आँसू अब पोंछ,बची बस यादें कोरी।
छूटा ऐसा साथ,गिरी हाथों से डोरी।

72
बोली
बोली बोलो प्रेम की,बनते बिगड़े काम।
कड़वी बोली से सदा,होते हैं बदनाम।
होते हैं बदनाम,बढ़े रिश्तों में दूरी।
कोमल सदा स्वभाव,करे अभिलाषा पूरी।
कहती अनु सुन बात,ज्ञान से भर लो झोली।
मधुर सदा व्यवहार,अगर हो मीठी बोली
अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, March 3, 2020

अपना सपना

ना भूत में और ना ही वर्तमान
मिला कब नारी को सम्मान?
अपनों ने ही छला सदा
कभी कुल और समाज की मर्यादा
कभी हार-जीत के पासों में
कभी अपनों से मिले झाँसों मे 
अपमान के आगे होंठ सिये
अपनों की खातिर गरल पिये
जिसने चाहा जैसा चाहा
अपना उसपर हुक्म चलाया
जब पानी सिर के पार हुआ
सरका पल्लू प्रतिकार हुआ
उठ खड़ी हुई चण्डी बनकर
सम्मान के लिए लड़ी तनकर
बार-बार फिर दमन हुआ
जोश और जज्बा न कम हुआ
ज़िंदगी बँधी कभी शर्तों से
अब आशाएं जन्मी उन पर्तों से
उम्मीदें उड़ाने भरने लगी
सपनों को आकार देने लगी
रोक लगी,टोक लगी
मुश्किल पग-पग पे आन पड़ी
जब किया इरादा उड़ने का
फिर डर छोड़ दिया मरने का
यह नारी आज की नारी है
जिसकी लड़ाई सदा जारी है
नहीं डरती किसी के त्याग से
नहीं माने किसी के दाँव ये
यह जीवन उसका अपना है
अपनी मंज़िल,अपना सपना है।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार