Monday, August 24, 2020

समय की चाल

समय बदलता कैसी चालें
देख हृदय से पीर झरे।
खोल रही हूँ याद पोटली
नयन नीर की धार गिरे।

कैसी जग की रीत रही है
चमक-धमक में सब उलझे।
तन की सुंदरता ही देखी
गाँठ नहीं मन की सुलझे।
ढके दिखावे की चादर में
कौन कहाँ अब दुख हरे।
समय...

आहट सुनके पीछे देखूँ
पहचाने सब लोग दिखे।
मुख मुस्काती परत चढ़ी है
अंदर बसा न झूठ दिखे।
बदल गई है रीत प्रीत की
मतलब की सब बात करे।
समय...

कल तक जो पीछे चलते थे
दूर दिखाई देते हैं।
चाल चली जीवन ने कैसी
देख कोई न चेते है।
रंग ढंग बिगड़े हैं सबके
कैसे भव से पार तरे।
समय......
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. आहट सुनके पीछे देखूँ
    पहचाने सब लोग दिखे।
    मुख मुस्काती परत चढ़ी है
    अंदर बसा न झूठ दिखे।
    बदल गई है रीत प्रीत की
    मतलब की सब बात करे।
    समय...
    बहुत सही

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    1. हार्दिक आभार कविता जी

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  3. समय की चाल ऐसी ही है ... साथ कोई नहीं देता ...
    सब अपने रस्ते निकल जाते हैं ...

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  4. वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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  5. हार्दिक आभार आदरणीय

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  6. बहुत सुंदर सार्थक भाव लिए सुंदर नवगीत

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