ज़िंदगी कब किसे
किस घड़ी धोखा दे जाए
इंसान को पता नहीं चलता
कब रिश्तों की माला से
कोई मनका टूटकर बिखर जाए
मानव बेबस होकर
बस खड़ा देखता रह जाए
ज़िद को जीतने का जुनून
खुशियों को बांटने का हुनर
रिश्तों को सहेजने तक
सब कुछ मानव के बस में है
अगर कुछ बस में नहीं है
तो परम सत्य मृत्यु को रोक पाना
चाँद तारे सूरज धरती अम्बर पानी
सब थे हैं और रहेंगे
जीवन के आने-जाने का क्रम भी
यूँ हीं चलता रहा है और रहेगा
अपनों से मिलने से लेकर
उनसे बिछड़ने की पीड़ा
हर किसी को जीवन में
सहनी पड़ती है और
यही इस जीवन का परम सत्य है
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-2-21) को "शाखाओं पर लदे सुमन हैं" (चर्चा अंक 3965) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसही कहा सखी पता ही नहीं चलता कौन सा मनका कब बिखर जाए।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।
सादर
बहुत सुन्दर मार्मिक सृजन अनुराधा जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीदी जी।
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