पूँछता है मौन अम्बर बोल तांडव थाप क्यों।
लीलती है मौत खुशियाँ हर गली में आज क्यों।
रौनकें फीकी हुई क्यों आरज़ू मरती दिखे।
साँस का सौदा मचाए यह रुदन का साज क्यों।
बढ़ रही मायूसियों के कौन रोके काफिले,
आज मानव आ रहा इंसानियत से बाज क्यों।
चीखती खामोशियों में गुल धुनें हैं प्यार की।
बंद कमरों में दफन हैं धड़कनों के साज क्यों।
आज मुरझाई फिजाएं झूमती गाती नहीं।
बोल दो मन की व्यथा सबसे छुपाती राज क्यों।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार
रौनकें फीकी हुई क्यों आरज़ू मरती दिखे।
ReplyDeleteसाँस का सौदा मचाए यह रुदन का साज क्यों।
वाह बहुत ही खूबूसूरत रचना है। खूब बधाई
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25 -5-21) को "अब दया करो प्रभु सृष्टि पर" (चर्चा अंक 4076) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी
Deleteकौन किससे प्रश्न पूछे, जब कहीं उत्तर नहीं हों।
ReplyDeleteसुन्दर कविता।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबढ़ रही मायूसियों के कौन रोके काफिले,
ReplyDeleteआज मानव आ रहा इंसानियत से बाज क्यों
समसामयिक हालातों को व्यक्त करती लाजवाब कृति।
हार्दिक आभार सखी
Deleteआज के डर को शब्दों मैं उतार दिया ...
ReplyDeleteहर बंध इंसान और इंसानियत की बात कर रहा है ....
हार्दिक आभार आदरणीय
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