जब झूठ भरी यह बोलियाँ
हृदय चुभोती तीर।
अंतस लेकर फिर वेदना
सत्य हुआ गम्भीर।
जब माया बनकर मोरनी
चल इठलाती चाल।
झूठों की वर्षा जब हुई
नाचे ता ता ताल।
मानवता खोती देख के
अम्बर खोता धीर।अंतस...
रूप झूठ के पहचान ले
ऐसे किसके नैन।
आत्माएं बिकती देख के
चुपके बीते रैन।
घर की भीत मौन हो चुकी
नींव बहाए नीर।अंतस...
ये जीवन की है पोटली
लिपटे हैं सब राज।
कागज से रिश्तों तोलकर
आते कब यह बाज।
प्रीत भरी थाली फेंक कर
विष घोल रहे खीर।अंतस....
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार
वाह 🌻👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार शिवम् जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteये जीवन की है पोटली
ReplyDeleteलिपटे हैं सब राज।
कागज से रिश्तों तोलकर
आते कब यह बाज।
प्रीत भरी थाली फेंक कर
विष घोल रहे खीर।
अति सुंदर सृजन
सादर
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह! क्या ख़ूब कहा सखी।
ReplyDeleteखरा-खरा ।
सादर
ये जीवन की है पोटली
ReplyDeleteलिपटे हैं सब राज।
कागज से रिश्तों तोलकर
आते कब यह बाज।
प्रीत भरी थाली फेंक कर
विष घोल रहे खीर।
सुंदर सृजन सखी, सादर नमन आपको
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteहार्दिक आभार सखी 🌹
ReplyDeleteजीवन दर्शन से ओतप्रोत भावपूर्ण सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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