टूटे हुए तारे
देख रोए मनुज करणी।
चिंता सरोवर में
चाँदनी डोलती तरणी।
ग्रसती सभी खुशियाँ
कालिमा रात की काली।
छुपती दिखे रजनी
मौत की देख दीवाली।
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी।
टूटे हुए तारे......
राहें सिसकती सी
चीखती गाड़ियों की धुन।
कागज लिखे साँसे
बेचता रोज ही अब सुन।
सहमा हुआ घर भी
देख अब भीत भी डरणी।
टूटे हुए तारे......
पैसा बना पानी
आज बहता दिखे ऐसा।
सींचा हुआ जीवन
छोड़ता साथ अब कैसा।
डसती नियति खुशियाँ
और चरती रही चरणी।
टूटे हुए तारे......
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
ग्रसती सभी खुशियाँ
ReplyDeleteकालिमा रात की काली।
छुपती दिखे रजनी
मौत की देख दीवाली।
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी।
टूटे हुए तारे......
आज जिस दौर से गुज़र रहे उसका सटीक चित्रण कर दिया है ।
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteडसती नियति खुशियाँ
ReplyDeleteऔर चरती रही चरणी।
टूटे हुए तारे......
बहुत सुन्दर रचना👌
हार्दिक आभार आ० उषा जी
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार शिवम् जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteआपकी कविता तो अच्छी है अनुराधा जी पर वैसे ही चहुँओर नैराश्य फैला है तो क्या टिप्पणी की जाए, क्या कहा जाए?
ReplyDeleteग्रसती सभी खुशियाँ
ReplyDeleteकालिमा रात की काली।
छुपती दिखे रजनी
मौत की देख दीवाली।
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी।
टूटे हुए तारे......
आज के सत्य को उजागर करती बेहद मार्मिक रचना सखी,सादर नमन आपको