आज कलम से रूठी कविता
कहीं छुपी मन के कोने।
घूम रही सूनी बगिया में
बीज शब्द के कुछ बोने।
भाव बँधे बैठे ताले में
बोल रहे धीरे-धीरे।
बिम्ब बिखेरे रात चाँदनी
कहती है नदिया तीरे।
शब्द मणी से भरलो झोली
चली चाँदनी अब सोने।
आज कलम से………
रक्तिम छवि लेकर शरमाए
भोर सुहानी मनभावन।
ओस लाज का घूँघट ओढ़े
छिपती है माटी आँगन।
दुविधा के केसों में उलझे
रस लगते आभा खोने।
आज कलम से………
शब्द नचे कठपुतली जैसे
पकडूँ तो भागे डोले।
मन बैरागी बनकर भटके
यादों के पट को खोले।
अंतस किरणें झाँक रही हैं
चढ़ा अँधेरा अब धोने।
आज कलम से………
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
ReplyDeleteशब्द नचे कठपुतली जैसे
पकडूँ तो भागे डोले।
मन बैरागी बनकर भटके
यादों के पट को खोले।
बहुत सुंदर।
हार्दिक आभार ज्योति जी।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार नितीश जी।
Deleteशब्द नचे कठपुतली जैसे
ReplyDeleteपकडूँ तो भागे डोले।
मन बैरागी बनकर भटके
यादों के पट को खोले।
कुछ ऐसी ही मनोदशा अपनी भी है
बेहतरीन सृजन सखी 🙏
हार्दिक आभार सखी।
Deleteलाज़बाब रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteवाह!!! मनाइए कविता को! बेचारी क़लम कहीं विरह में सूख न जाए!!! अप्रतिम भाव-सौंदर्य!!!
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपको अपने ब्लॉग पर देख बहुत खुशी हुई। हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteहार्दिक आभार पम्मी जी।
ReplyDeleteआपकी कलम से न कविता रूठ सकती है और न आपसे शब्द । यूँ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteरक्तिम छवि लेकर शरमाए
ReplyDeleteभोर सुहानी मनभावन।
ओस लाज का घूँघट ओढ़े
छिपती है माटी आँगन।
दुविधा के केसों में उलझे
रस लगते आभा खोने।
आज कलम से………बहुत ही सराहनीय मन को छूती सरस रचना ।
वाह ! रूठने-मनाने के बाद कविता और भी निखर कर सामने आई है.
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय 🙏
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