युगों युगों तक तरसी जनता
राम धाम के दर्शन को।
त्याग तपस्या का फल मिलता
देख बने अब मंदिर को।
विधना के भी खेल निराले
राम लला का घर छूटा।
देख पीर श्री राम लला की
जन-मन का हृदय टूटा।
विराम हुआ संघर्ष देख अब
राम नाम का कीर्तन हो।युगों युगों....
स्वर्ण द्वार सुंदर नक्काशी
रामभवन यह भव्य बना।
सुंदरता कुछ कही न जाय
सरजू तट शुभ भवन तना।
देव देखकर हर्षाते सब
श्री राम चले अपने घर को। युगों युगों....
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु के
धीरज का कोई अंत नहीं।
माया तज श्री राम को पूजे
कोई भरत सा संत नहीं।
पहन आभूषण राम चले घर
थाम धनुष सुदर्शन को। युगों युगों..
अनुराधा चौहान'सुधी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 20 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही लाजवाब एवं उत्कृष्ट
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteयुगों से तरसते आंखों को करार आयो हो तो क्यों नही खुशियां घर घर आए,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteJai shree ram
हार्दिक आभार कविता जी
Deleteबेहतरीन रचना जय श्री राम
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीदी
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