Sunday, June 10, 2018

रिश्तों का वृक्ष

    रिश्तों से लदा हुआ
     एक वृक्ष था खड़ा
     प्रेम की धूप से था
       दिन पर दिन फल रहा
       अपनत्व के भाव से
       हर कोई था सींच रहा
       रिश्तों से लदा हुआ
       एक वृक्ष था खड़ा
       बह चली अचानक
       नफरत की आँधियाँ
       आँधियों के जोर से
       हर रिश्ता उड़ चला
       वृक्ष था हरा भरा
       ठूंठ बनकर रह गया
       मतलब के मौसम में
       रिश्ते सभी बिखर गए
       शाख़ से जुदा हो कर
       वो न जानें किधर गए
       प्रेम की धूप भी अब
       बदले की आग बन गई
       अपनत्व का भाव भी
       अब जुदा होने लगा
        वृक्ष था हरा भरा
        ठूंठ बनकर रह गया
        ***अनुराधा चौहान***

6 comments:

  1. बिल्कुल सही और बढ़िया कविता

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  3. बहुत सुन्‍दर भावों को शब्‍दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्‍तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्‍छा लगा,

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  4. धन्यवाद अभिलाषा जी

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