Tuesday, June 26, 2018

करुण रुदन

 मेघों क्यों इतना
करुण रुदन है
क्या तेरे सीने
 में दफन है
विरह की गम में
मे रो रही हूं
तुझको किससे
बिछड़ने का ग़म है
क्या नारी की व्यथा से
हो रहे इतना व्यथित
या प्रकृति के सौंदर्य
छिनते देख द्रवित हो
क्यों इतना
अश्रु बहा रहे हो
प्रर्यावरण का
बिगड़ता संतुलन
क्या तुमको करता
है पीड़ित
या इंसानियत
को मरते देख
हो रहा है
करुण रुदन है
  ***अनुराधा***

3 comments:

  1. प्राकृति का रोना उसका क्रोध भी है इंसान के प्रति ...
    इंसान जो मद में भूल गया है अपना ही भला ... और कर रहा है इसका नाश ... सुंदर रचना ...

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    1. जी इसलिए प्रकृति कभी कभी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है आपका आभार आदरणीय

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  2. बहुत बढ़िया

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