मेघों क्यों इतना
करुण रुदन है
क्या तेरे सीने
में दफन है
विरह की गम में
मे रो रही हूं
तुझको किससे
बिछड़ने का ग़म है
क्या नारी की व्यथा से
हो रहे इतना व्यथित
या प्रकृति के सौंदर्य
छिनते देख द्रवित हो
क्यों इतना
अश्रु बहा रहे हो
प्रर्यावरण का
बिगड़ता संतुलन
क्या तुमको करता
है पीड़ित
या इंसानियत
को मरते देख
हो रहा है
करुण रुदन है
***अनुराधा***
करुण रुदन है
क्या तेरे सीने
में दफन है
विरह की गम में
मे रो रही हूं
तुझको किससे
बिछड़ने का ग़म है
क्या नारी की व्यथा से
हो रहे इतना व्यथित
या प्रकृति के सौंदर्य
छिनते देख द्रवित हो
क्यों इतना
अश्रु बहा रहे हो
प्रर्यावरण का
बिगड़ता संतुलन
क्या तुमको करता
है पीड़ित
या इंसानियत
को मरते देख
हो रहा है
करुण रुदन है
***अनुराधा***
प्राकृति का रोना उसका क्रोध भी है इंसान के प्रति ...
ReplyDeleteइंसान जो मद में भूल गया है अपना ही भला ... और कर रहा है इसका नाश ... सुंदर रचना ...
जी इसलिए प्रकृति कभी कभी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है आपका आभार आदरणीय
Deleteबहुत बढ़िया
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