Tuesday, July 17, 2018

यादें माँ के घर की


मन को बहुत तड़पाता है
माँ तेरा घर बहुत याद आता है
जब भी तकलीफ में होती हूँ
बस उन लम्हों में
 तुझ को ही जीती हूँ
याद आता है
ममता का आंचल
याद आता है
तेरा प्यार से सहलाना
माँ तुझसे ही सीखा है मेंने
खुद को भूलकर
सबको खुशी देना
सबके उठने से पहले उठना
सबके सोने के बाद सोना
माँ याद आता है 
वो बीता हुआ बचपन
पापा से लाड़ लगाना
और बाबा के किस्से
दादी की कहानियां
वो भाई से झगड़ना
बहनों संग हंसी ठिठोली
वो कागज की नाव
वो कपड़े की गुड़िया
वो आंगन का कोना
जहाँ खेलती थी हम सखियां
मन को बहुत तड़पाता है
माँ तेरा घर बहुत याद आता है
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. मन को छूती हुयी ...
    माँ तो पैदा होने के साथ ताउम्र साथ रहती है ... उसकी कमी हमेशा खलती है ... बहुत सुंदर रचना ...

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  2. प्रिय अनुराधा जी ---मैं भी अबकी बार मायके ना जा पाई - अपनी गृहस्थी में कभी कभी ऐसी मजबूरियां हो जाती हैं कि मायके का लालच छोड़ना पड़ता है पर भीतर बसी माँ के घर की यादें वो स्नेह का बिछोना होता है जिसपर मन अनंत संतोष पाता है | भावपूर्ण पंक्तियों के लिए आपको सस्नेह बधाई |

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद रेणु जी हर शादीशुदा नारी के जीवन का दु:ख है हम अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं पर माँ से दूर होने का दर्द चुपचाप सहन करते हैं

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  3. सच ....ये हम सब का साझा दुःख है ....बहुत याद आती है माँ की ....

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    1. सही कहा रेवा जी हम सब का साझा दुःख है
      सादर आभार

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  4. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।

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  5. बेहतरीन......
    हर नारी मन के भाव सुनाता
    माँ तेरा घर याद है आता !
    👍👍👍👍👍👍👍👍👍

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    1. सादर आभार इंदिरा जी

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  6. खूबसूरत एहसास। बहुत अच्छा लिखा आप ने। हृदयस्पर्शी

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  7. सादर आभार आदरणीय

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  8. धन्यवाद आदरणीय

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