Saturday, August 18, 2018

भयावह यह मंजर है

उजड़ते घर बिखरते लोग
प्रभू कैसी यह लीला है
हरे भरे सुंदर केरल को
कैसे विनाश ने घेरा है
कहीं नाम की बारिश
कहीं पर आफत बन बरसे
कुदरत की कैसी लीला
जो इंसां को ही निगले
फसे कई बेजुबान जानवर
बह गए सपने भी सारे
बाढ़ की इस विभीषिका में
उजड़ गए आशियाने भी
किसी के माँ बाप बिछड़े हैं
तो कहीं बच्चे बिलखते हैं
फसी पानी में जिंदगियां
दाने दाने को तरसती हैं
हरियाली से सजे स्वर्ग का
कैसा भयावह यह मंजर है
जिधर तक है नजर जाती
वहां तक दिखता है पानी
आंखों में नमी लेकर
जगह रहने की ढूंढ़े हैं
यह भीषण बाढ़ का मंजर
बड़ा दिल को है दहलाता
प्रभू अब रोक दो बारिश
यह विनाश भी थम जाएं
जो बिछड़ी हैं जिंदगियां
वो आपस में मिल जाएं
***अनुराधा चौहान***


19 comments:

  1. रचना मे आपकी कोमल भावनाएं मुखरित हो सामने आई बहुत उत्तम लेखन ।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए 🙏

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  2. बड़ी ही दारुण स्थति है | प्रवाह और शैली शानदार है आपकी , बनाए रखें | पोस्ट को सहेज कर लिए जा रहा हूँ चिटठा चर्चा में सहेजने के लिए | ब्लॉग बुलेटिन |

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    1. धन्यवाद आदरणीय अजय कुमार जी

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  3. लाजवाब रचना है ...👌👌👌

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  4. बेहतरीन रचना

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    1. धन्यवाद आदरणीय जीवन जी

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  5. सुंदर भावांजलि

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  6. बहुत बढ़िया ।।

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  7. बढ़िया लेखन।
    भगवान इस दुख की घड़ी में केरल को साहस दे

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  8. दुःख का मंज़र है ...'
    इश्वर कभी कभी इम्तिहान लेता है ... अपने होने का एहसास कराता है ....
    मार्मिक भाव ....

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    1. धन्यवाद आदरणीय दिगंबर जी 🙏

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  9. Man ki baat ko savdo m prakt krana bahut muskil h pr aapne kr dekhaya

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