Saturday, September 22, 2018

पूर्ण विराम बनकर

आरजू लिए आसमां में
उड़ने की जब भी मैं
सपनों को जीने लगती
काटने परों को मेरे
दुनिया खड़ी होने लगती
लगने लगते प्रश्नचिंह
मेरी हर एक बात पर
निकल आते थे आंसू
मेरे खुद के हालात पर
पूछती थी मैं आईने से
यह सवाल मन के
प्रश्नचिंह बन खामोशी
बिखर जाती थी मन में
सोचती थी कब लगेगा विराम
इन बातों पर बेफिजूल की
सोचती थी मैं अक्सर यही
हमसफर मिले सच्चा कोई
जब साथ तेरा किस्मत ने
साथ मेरे जोड़ दिया
कदमों में पड़ी बेड़ियों को
तूने आकर तोड़ दिया
देकर नई पहचान तुने
मेरे सपने मेरे वजूद को
तुम आए हो मेरी
बिखरती जिंदगी में
एक पूर्ण विराम बनकर
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर सखी,
    तुम आए हो मेरी
    बिखरती जिंदगी में
    एक पूर्ण विराम बनकर।
    सच मन चीता साथी मिल जाय तो हर खोज और चाहत पर पूर्ण विराम है, सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए

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  2. बेहतरीन रचना

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  3. महिला मन की खामोशी को तोडती सार्थक कविता। अनुराधा जी हर बार नये विषय को लेकर आती है आपकी कविता ! 🌹 🌹

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    1. धन्यवाद आदरणीय जीवन जी

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  4. तुम आए हो मेरी
    बिखरती जिंदगी में
    एक पूर्ण विराम बनकर
    वाह!!!
    जीवनसाथी मनमाफिक हो तौ सचमुच बेड़ियां कट ही जाती हैं....
    लाजवाब रचना...

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    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी

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  5. शानदार रचना 👌👌👌

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  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
    शानदार.....

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  7. Very nyc poem... really awesome.... if you want to read business and personality related articles visit chandeldiary.blogspot.com

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    1. धन्यवाद आदरणीय राहुल जी

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  8. तुम आए हो मेरी
    बिखरती जिंदगी में
    एक पूर्ण विराम बनकर। .....वाह!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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