क्यों कभी कभी ऐसा होता है
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं होता है
होता है मन परेशान
और दिल बैचेन होता है
ज़मीं लगती है बंजर
आसमां सफेद होता है
जब मन में उदासी का
आलम गहरा होता है
दिल में मचती है हलचल
समंदर ठहरा ठहरा होता है
जलाती हैं तन को सर्द हवाएं
तेज धूप में घना कोहरा होता है
फूल बन जाते हैं कांटे
कांटों में चमन दिखता है
जब देते है अपने धोखा
तो दिल में बहुत दर्द होता है
क्यों कभी कभी ऐसा होता है
सब कुछ होकर भी
कुछ नहीं होता है
***अनुराधा चौहान***
बेहतरीन रचना 👌
ReplyDeleteधन्यवाद सखी अनिता जी
Deleteअनुराधा दी,क्योंकि हर क्यों का जबाब नही होता।
ReplyDeleteजी धन्यवाद ज्योती जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए
Deleteवाह!!! बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/09/2018 की बुलेटिन, शहीद ऐ आज़म की १११ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम् जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteफूल बन जाते हैं कांटे
कांटों में चमन दिखता है
जब देते है अपने धोखा
तो दिल में बहुत दर्द होता है
लाजवाब..
ReplyDeleteकभी कभी जीत कर भी हार जाते हैं.
रंगसाज़
बहुत बहुत आभार रोहिताश जी
Deleteवाह बहुत सुंदर अनुराधा जी मन मोहख रचना ।
ReplyDeleteवाहः बहुत उम्दा
ReplyDeleteबेहतरीन अशआर
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया दीपशिखा जी
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