Tuesday, April 23, 2019

मेरी वेदना


तेरी यादों की हवा मुझे छूकर गुजरती है
मेरे जख्मों को कुरेद आँखें नम कर देती है
डूबती हूँ मैं अपने अतीत की गहराई में 
तुझसे मिलने की चाहत बेचैन करती है

मेरे दर्द की इंतहा उफ़ ये तेरा इंतज़ार
बेकरार कर देती है आहट हर प्रहर
हवाओं के झोंके यादों को झिंझोड़ते
आँखों में उतरने लगती दर्द की लहर

यह सर्दियों की धूप भी मन को खलती
मौसम का आना यादों से आँख-मिचोली
उम्र की दहलीज से पल-पल उतरती
वेदना में भींगा हुआ कोई गीत गुनती

सुन कोयल की बोली अमराई रोई
कहीं टूटा तारा कहीं सिसका कोई
हवाओं संग आ गिरी यादों की गठरी
मेरी वेदना के दर्द से वो मुरझा कर रोई

खिले धूप जीवन में वज़ह नहीं मिलती 
सांँसों की सरगम में ना कोई धुन बजती
काश खुशी के कोई गीत गुनगुनाऊँ
ऐसी मुझको कोई वज़ह ना मिलती

वेदना में अकसर आँखें जब भीगती 
दर्द दिल का देख दामिनी भी तड़कती
तुझसे मिलने की चाह है अभी जी रही हूँ
असर बेरुखी का सह विरहन तड़पती।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. मन की वीणा के स्वर शब्दों से निकल रहे हैं
    सुन्दर लम्हों को बाँध के लिखी रचना है ...

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  2. वाह
    बहुत सुंदर भाव
    बेहतरीन सृजन

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    1. धन्यवाद रवीन्द्र जी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. तुझसे मिलने की चाह है अभी जी रही हूँ
    तू आकर तो देख असर अपनी बेरुखी का...
    मन को भिगोती, वेदना को मुखर करती सुंदर अभिव्यक्ति।

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  5. खिले धूप जीवन में कोई वज़ह नहीं है
    सांँसों की सरगम में कोई सुर ना सजता
    होंठों से निकले खुशियाँ गीत बनकर
    ऐसी मुझको मिलती कोई वज़ह ना।

    वाह अनंत गहराई से उठते स्वर वेदना के।
    बहुत सुंदर रचना सखी।

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  6. खिले धूप जीवन में कोई वज़ह नहीं है
    सांँसों की सरगम में कोई सुर ना सजता
    होंठों से निकले खुशियाँ गीत बनकर
    ऐसी मुझको मिलती कोई वज़ह ना...
    👌👌👌👌

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  7. वाह!!सखी ,बहुत खूब!

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  8. तुझसे मिलने की चाह है अभी जी रही हूँ
    असर बेरुखी का सह विरहन तड़पती।

    वाह !! बहुत सुंदर ,ह्रदयस्पर्शी सृजन सखी

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  9. पुनः पढ़ी आपकी रचना। बेहतरीन अभिव्यक्ति सखी।

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