Sunday, August 11, 2019

दिल है कि मानता नहीं

दिल ही तो मानता नहीं
बुनता रहता ताने-बाने
कभी प्रीत भरे
कभी रीते मन के अफसाने
बिखरी किर्चे चुनता रहता
जोड़ता उन्हें बार-बार
टूटकर बिखरता रहता
दिल है कि मानता नहीं
अरमानों की पालकी में बैठ
प्रिय का इंतज़ार करता
सुनहरे स्वप्नों में खोकर
नवजीवन के सपने बुनता
उम्मीदों के पंख लगाकर
आशा की डोली में बैठकर
उड़ने को बेकरार रहता
दिल ही तो मानता नहीं
जख़्म सहकर भी हँसता
झील की गहराई में उभरा
अक्स देख किसी का
चुपके-चुपके रो देता
और फिर
रात की पालकी में सवार हो
कहीं अँधेरे में जा छुपता
दिल है कि मानता ही नहीं
***अनुराधा चौहान***

11 comments:

  1. "बिखरी किर्चे चुनता रहता
    जोड़ता उन्हें बार-बार" .... मर्मस्पर्शी सोचनीय रचना ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-08-2019) को "बने ये दुनिया सबसे प्यारी " (चर्चा अंक- 3425) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  3. बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति अनुराधा जी !!

    ReplyDelete
  4. ये दिल जो न कहे करे , बहुत ही शानदार है | अनुराधा जी जारी रहिये शुभकामनायें

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अजय जी

      Delete
  5. हार्दिक आभार आदरणीय

    ReplyDelete
  6. दिल तो है दिल ... दिल का ऐतबार क्या कीजे ...
    एक अच्छी रचना है ... दिलकश ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  7. हार्दिक आभार आदरणीय

    ReplyDelete