Wednesday, August 28, 2019

शर्तों पर ज़िंदगी

शर्तों के धागों में
उलझती जाती ज़िंदगी
चाहे -अनचाहे पलों को
जीने को मजबूर
बालपन से ही
 टाँक दी जाती है
जीवन जीने की शर्तें 
हर बेटियों के दामन में
ज़िंदगी की आजादी है
 सिर्फ दूसरों के लिए
जो नहीं मानती 
शर्तों से परे हटकर
ज़िंदगी जीती हैं आजादी से
अपने तौर-तरीके से
बहुत मुश्किल होता है
पर हार नहीं मानती
वह अलंकृत होती 
कई नामों से पर फिर भी
अपना वजूद को 
कायम रखकर
अपना लोहा मनवा लेती
शर्तों के दायरे में जीने वाली
घर की चारदीवारी  
सिमट कर रह जाती 
ज़िंदगी भर रिश्तों को
 रखती सहेजकर
लड़कर-झगड़कर 
तो कभी प्यार से
रिश्तों के बीच 
खुशियाँ तलाशती
माँ-बहन तो कभी बेटी
 बनकर शर्तें निभाती
और अपने स्वप्न दबा लेती
परिवार की खुशियों तले
***अनुराधा चौहान***

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.8.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3442 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  2. नारी जीवन का मार्मिक सच लिखा है आपने प्रिय अनुराधा जी | शर्त की बाध्यता में बंधी नारी गर्त में उतरती अपने सपनों से दूर चली जाती है | सार्थक रचना |

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    1. हार्दिक आभार प्रिय सखी

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  3. नारी ही जाने नारी मन...
    सुन्दर प्रस्तुति

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  4. नारी जीवन का मार्मिक सच

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