रस बिना जीवन की
क्या कल्पना करे कोई
रस नहीं तो जीवन सबका
पत्थर सा होता नीरस
इंसान होते बुत जैसे
फूल बिना रस के कंटीले
फलों का सृजन न होता
बंजर होता धरा का सीना
मुस्कान कहीं दिखती नहीं
न सुर होता न सरगम बनती
सोचो कैसी होती ज़िंदगी
रस ही जीवन संसार का
जीवन के रंग भी हैं रस से
फूलों के रस से ले मधुकर
मधुवन सींचते मधुरस से
मधुर रस से भरे
फल-फूलों से लदी-फदी
झूमती वृक्षों की डालियाँ
जीवन झूमे विभिन्न रसो से
प्रेम रस में सराबोर हो
सजनी साजन के मन भाए
कान्हा की प्रीत में झूमे
गोपियाँ गोकुल में रास रचाएं
वियोग में डूबी मीरा
गाती विरह की वेदना
किलकारी शिशु की सुन
अमृत रस-सा ममत्व
उमड़ता सीने में
दादाजी के किस्से सुनकर
बचपन हँसता बगीचे में
भांति-भांति के रस लिए
वसुधा जीवन में प्राण भरे
रस बिना जीवन नीरस
रसमय जीवन से प्रकृति हँसे
***अनुराधा चौहान***
सही कहा सुरों से।जीवन की सुंदरता है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ऋतु जी
Deleteरस से परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteबधाई
हार्दिक आभार अनीता जी
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी
Deleteरस से सराबोर सरस रचना सुंदर लेखन सखी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३० सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सही है रस बगैर क्या ही है जीवन में।
ReplyDeleteबेस्वाद सा, नीरस...
पल पल सरस जीवन जीने को प्रेरित करती कविता।
पधारें शून्य पार
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-09-2019) को " गुजरता वक्त " (चर्चा अंक- 3474) पर भी होगी।
रस नहीं तो जग नहीं ... जग की खुशियों का स्वाद नहीं ...
ReplyDeleteमहसूस करने के लिए मन में रस-धार होना जरूरी है ... बहुत ही अच्छे तरीके में यह एहसास कराती रचना ....
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!बेहतरीन रचना सखी !
ReplyDeleteबहुत सरस रचना अनुराधा जी.
ReplyDeleteमन का मिठास लिए रसभरी रचना सखी ,सादर
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन सखी।
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
Delete