Saturday, September 28, 2019

जीवन के रस

रस बिना जीवन की 
क्या कल्पना करे कोई
रस नहीं तो जीवन सबका
पत्थर सा होता नीरस 
इंसान होते बुत जैसे
फूल बिना रस के कंटीले
फलों का सृजन न होता
बंजर होता धरा का सीना
मुस्कान कहीं दिखती नहीं
न सुर होता न सरगम बनती
सोचो कैसी होती ज़िंदगी
रस ही जीवन संसार का
जीवन के रंग भी हैं रस से
फूलों के रस से ले मधुकर
मधुवन सींचते मधुरस से
मधुर रस से भरे 
फल-फूलों से लदी-फदी
झूमती वृक्षों की डालियाँ
जीवन झूमे विभिन्न रसो से
प्रेम रस में सराबोर हो
सजनी साजन के मन भाए
कान्हा की प्रीत में झूमे
गोपियाँ गोकुल में रास रचाएं
वियोग में डूबी मीरा 
गाती विरह की वेदना
किलकारी शिशु की सुन
अमृत रस-सा ममत्व 
उमड़ता सीने में
दादाजी के किस्से सुनकर
बचपन हँसता बगीचे में
भांति-भांति के रस लिए
वसुधा जीवन में प्राण भरे
रस बिना जीवन नीरस
रसमय जीवन से प्रकृति हँसे
***अनुराधा चौहान***

20 comments:

  1. सही कहा सुरों से।जीवन की सुंदरता है।

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  2. रस से परिपूर्ण रचना
    बधाई

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    1. हार्दिक आभार अनीता जी

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  3. बेहतरीन रचना

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  4. रस से सराबोर सरस रचना सुंदर लेखन सखी ।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३० सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. सही है रस बगैर क्या ही है जीवन में।
    बेस्वाद सा, नीरस...
    पल पल सरस जीवन जीने को प्रेरित करती कविता।
    पधारें शून्य पार 

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-09-2019) को " गुजरता वक्त " (चर्चा अंक- 3474) पर भी होगी।

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  8. रस नहीं तो जग नहीं ... जग की खुशियों का स्वाद नहीं ...
    महसूस करने के लिए मन में रस-धार होना जरूरी है ... बहुत ही अच्छे तरीके में यह एहसास कराती रचना ....

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  9. वाह!बेहतरीन रचना सखी !

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  10. बहुत सरस रचना अनुराधा जी.

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  11. मन का मिठास लिए रसभरी रचना सखी ,सादर

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  12. बहुत सुंदर संकलन सखी।

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  13. बेहतरीन सृजन अनुराधा जी ।

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    1. हार्दिक आभार मीना जी

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