Monday, October 14, 2019

जल बिन तड़पती मीन

कुछ पलछिन नैनों में बसे
कुछ भीतर-बाहर भाग रहे
कुछ अलमारी में छुप बैठे
कुछ मेरी खुली किताब बने

कुछ कब सावन की बन बदरी
नयनों से बरसकर चले गए
कुछ जेठ की तपती धूप से
दिन-रात जलाते मन की नगरी

कुछ सूख-सूख कर चटक रहे
ज्यों धूप से चटकती धरती हो
कुछ हवाओं संग कर इतराते
जैसे पुरवाई मुझसे जलती हो

नयनों को मेरे आराम नहीं
दिन-रात देख रहे रस्ता तेरा
आजा ओ परदेशी कहीं से
क्या भूल गया तू प्यार मेरा

बुझने लगी जीवन की बाती
जीवन के दीप जलाने जा
कुछ भूली-बिसरी यादें बची हों
उन यादों के साथ में आजा

पूनम का चाँद देख मुझे
कुछ मुरझाया सा रहता है
हर वक़्त मेरी आँखों में
अब तेरा ही साया रहता है

चाँदनी सहलाकर कहती
क्यों रहती हो खोई-खोई
कुछ प्रीत के गीत सुना दे मुझे
मेरी न सखी-सहेली कोई

कैसे कहूँ अब तुम बिन मेरे
सजते नहीं हैं सुर कोई
बिखर गई जीवन से सरगम
मैं जल बिन तड़पती मीन कोई

मैं दुखियारी किस्मत की मारी
जिसकी क़िस्मत ने ही षड़यंत्र रचे
मृग मरीचिका-सी खुशियाँ देखकर
दिल ने कांँटो भरे यह मार्ग चुने
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

17 comments:

  1. हार्दिक आभार दी🌹

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 16 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद

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    1. हार्दिक आभार पम्मी जी

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार अश्विनी जी

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  5. प्रिये मिलन की आस में तड़पती नारी की मार्मिक अभिव्यक्ति ,लाजबाब सृजन अनुराधा जी ,सादर

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  6. बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन...
    वाह!!!

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  7. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति अनुराधा जी ।

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  8. गहरे उतरते शब्‍द ...आभार ।

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  9. अति सुंदर रचना अनुराधा जी
    बेहतरीन

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  10. मृग मरीचिका-सी खुशियाँ देखकर
    दिल ने कांँटो भरे यह मार्ग चुने..
    भावपूर्ण मार्मिक, प्रणाम

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