Tuesday, January 14, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--8

43
गहरा
छाया अँधियारा घना,कैसी काली रात।
छोड़ा साथी साथ जो,गहरा दिल पे घात,
गहरा दिल पे घात,चला होंठों को भींचे।
आँसू की बरसात,रही अँखियों को मींचे।
कहती अनु यह देख,समय यह कैसा आया।
सबने छोड़ा साथ,ढूँढती अपनी छाया।

44
आँगन
कृष्णा आँगन में बँधा,करे चिरौरी मात।
माखन चोरी की सभी,करते झूठी बात।
करते झूठी बात,मातु मैं नन्हा बालक।
छोटे-छोटे हाथ,सखा के झूठे पालक।
माखन मुख लपटाय,मिटाते अपनी तृष्णा।
मैया दोषी जान,विटप से बाँधी कृष्णा

45
आधा
आधा शिव का रूप है,आधी गौरा वाम।
गौरी शंकर रूप का,पूजन आठों याम
पूजन आठों याम,अर्द्धनारीश्वर भोले।
शिवशंकर साकार,गले में विषधर डोले।
देखी अनु शुभ रूप,मिटी जीवन से बाधा।
डम डम डमरू हाथ,सती शिव अंगी आधा।

46
यात्रा
यात्रा जीवन से जुड़ी,नरम गरम सी छाँव।
बरसे खुशियों की झड़ी,कहीं दुखों का गाँव।
कहीं दुखों का गाँव,अकारण पाले दुविधा।
करते नित संघर्ष,कहाँ सब पाते सुविधा।
कहती अनु कुछ सीख,गिनों सुख दुख की मात्रा।
धूप छाँव सम भार,यही है जीवन यात्रा

47
मेला
मेला दुनिया है बनी,मानव खेले खेल।
जीवन में मिटता दिखे,मानव मन का मेल।
मानव मन का मेल,बने हैं सब व्यापारी।
खोए सुख औ चैन,दुखी हो दुनिया सारी।
कहती अनु सुन बात,समय सुख दुख का रेला।
मानव जोकर रूप,बना जग सारा मेला।

48
कोना
कोना मन का साफ हो,दिल हो निर्मल नीर।
कोने में ही हैं छुपी,कड़वी जीवन पीर।
कड़वी जीवन पीर,छुपी हर मानव मन में।
मुखड़े पर मुस्कान,जले दिल पावक वन में।
कहती अनु सुन बात,मिटा दो अब हर रोना।
खुशियाँ चारों ओर,खिले मन कोना-कोना।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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