Friday, January 17, 2020

फागुनी छू कर गई

फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।
ऋतुराज का संदेश लिए,
गीत मधुर सुना गया।।

पलाश फूले डालियों पर‌,
दहक उठे अंगारों से।
खिलखिलाती धूप आ रही,
संदेश ले मधुमास के।
उल्लास भरता बसंत मन में,
तन मेरा सहला गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

कोयल की कूक से चहकी,
धुन कोई मधुमास की।
अमराई संग महका मन,
महकती पुरवाई भी।
पीले पीले खेत सरसों,
खिल चूनर लहरा रहा।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

फागुन की रौनक बसी है,
होली का त्यौहार में।
भाँग के मस्ती में झूमते,
लोग गली हर गाँव में ‌।
बज उठे हैं ढोलक ताशे,
सरगम बजती फाग की।
मच रही है धूम हर ओर,
खुशियाँ हैं बरसा गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  2. बहुत खूब... सखी

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  3. बहुत सुन्दर अनुराधा जी !
    ऐसा मनमोहक ऋतु-वर्णन हम कंक्रीट के जंगल में रहने वालों को एक बार फिर से प्रकृति के आँचल में छुप जाने के लिए प्रेरित करता है.

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  4. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. फागुनी छू कर गई और,
    मन मेरा बौरा गया।
    कान में हौले से मेरे,
    गीत कोई सुना गया।।

    बहुत खूब सखी. यह सृजन मेरे मन को गुदगुदा गया... 👌 👌 👌 बेहतरीन सृजन

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  6. वाह
    बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. मन मेरा बौरा गया।
    कान में हौले से मेरे,
    गीत कोई सुना गया।।

    बहुत खूब .....बेहतरीन

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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