Saturday, March 7, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--16

92
जीता
जीता मानव दंभ में,पाले झूठे यार।
जीता है जीवन वही,जिसने जीता प्यार।
जिसने जीता प्यार,बना वो सबका प्यारा।
अपने रहते साथ,लगे वो सबको न्यारा।
कहती अनु सुन बात,यही कहती है गीता।
करता अच्छे काम,तभी सुख मानव जीता।

93
नारी
नारी माँगे है सदा,जग में अपना मान।
बदले में करती सदा,सबका ही सम्मान।
सबका ही सम्मान,समझ नारी की पीड़ा।
ममता मूरत मान,उठा लेती हर बीड़ा।
कहती अनु सुन आज,सदा ही सब पे भारी।
 दुर्गा काली रूप,नहीं डरती अब नारी।

94
साहस
मन में साहस हो अगर,हर मुश्किल आसान।
साहस के दम पर सदा,बनती है पहचान।
बनती है पहचान,जहाँ वीरों को मानें।
कायर है नाकाम,सभी साहस पहचानें।
कहती अनु सुन बात,भरो साहस से जीवन।
कर लो ऊँचा नाम,खुशी से झूमे फिर मन।


95
नटखट
नटखट नन्हा लाड़ला,नागर नंद किशोर,
 यशुमति नंदन के सखा, मटकी तोड़े भोर।
मटकी तोड़े भोर,दही माखन वो खाते।
गोपी करती क्रोध,हँसी होंठों पे लाते।
कहती अनु यह देख,करे मटकी से खट खट।
नटवर नागर नंद,लला है कितना नटखट।

96
अंकुश
अंकुश नारी पे लगा,छीना उसका चैन।
बेड़ी पैरों में पड़ी, होती थी बेचैन।
होती थी बेचैन,छिनी सुख सुविधा सारी।
बदला उसने रूप,दिखा दी ताकत नारी।
कहती अनु यह देख,चले न शासन निरंकुश।
नारी बदले सोच,हटा ऊपर से अंकुश।

97
चंदन
चंदन माथे पे लगा,माला पकड़ी हाथ।
वामन अवतार श्री प्रभू, लकड़ी छत्री साथ।
लकड़ी छत्री साथ,चले जगतारण सारा।
अद्भुत यह अवतार,बली को पग से तारा।
कहती अनु हरि रूप,करो नित इनका वंदन।
श्री हरि पूजो रोज,लगा नित माथे चंदन।

98
थोड़ा
थोड़ा समय बिताइए,मात-पिता के साथ।
मिलता है किस्मत से,इनका सिर पे हाथ।
इनका सिर पर हाथ,नहीं कोई विपदा घेरे।
चहके आँगन द्वार,खुशी के लगते फेरे।
कहती अनु यह देख,कभी जो दिल को तोड़ा।
फूटा उसका भाग्य,मिटे सुख थोड़ा-थोड़ा।
99
पूरा
करने है पूरा अभी,कई अधूरे काम।
जाने कब ढलने लगे, जीवन की यह शाम।
जीवन की यह शाम,चलो अब डरना कैसा।
जाने दुनिया नाम,बनें कुछ कारण वैसा।
कहती अनु सुन बात,चला क्यों श्रम से डरने।
श्रम से खुश संसार,नहीं बातों के करने।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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