Tuesday, March 3, 2020

अपना सपना

ना भूत में और ना ही वर्तमान
मिला कब नारी को सम्मान?
अपनों ने ही छला सदा
कभी कुल और समाज की मर्यादा
कभी हार-जीत के पासों में
कभी अपनों से मिले झाँसों मे 
अपमान के आगे होंठ सिये
अपनों की खातिर गरल पिये
जिसने चाहा जैसा चाहा
अपना उसपर हुक्म चलाया
जब पानी सिर के पार हुआ
सरका पल्लू प्रतिकार हुआ
उठ खड़ी हुई चण्डी बनकर
सम्मान के लिए लड़ी तनकर
बार-बार फिर दमन हुआ
जोश और जज्बा न कम हुआ
ज़िंदगी बँधी कभी शर्तों से
अब आशाएं जन्मी उन पर्तों से
उम्मीदें उड़ाने भरने लगी
सपनों को आकार देने लगी
रोक लगी,टोक लगी
मुश्किल पग-पग पे आन पड़ी
जब किया इरादा उड़ने का
फिर डर छोड़ दिया मरने का
यह नारी आज की नारी है
जिसकी लड़ाई सदा जारी है
नहीं डरती किसी के त्याग से
नहीं माने किसी के दाँव ये
यह जीवन उसका अपना है
अपनी मंज़िल,अपना सपना है।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. वाह!!सखी ,बेहतरीन👌👌,नारी नें उडना शुरु कर दिया है ,आ गई है पंखों में ताकत ,हौसले बुलंद हैं ,पानी है मंजिल ।

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  2. जब इरादा किया उड़ने का
    फिर डर छोड़ दिया मरने का
    यह नारी आज की नारी है
    जिस की लड़ाई सदा जारी है
    यह जीवन उसका अपना है
    अपनी मंजिल अपना सपना है
    बहुत सुंदर सृजन अनुराधा जी

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 05 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. यह नारी आज की नारी है
    जिसकी लड़ाई सदा जारी है
    नहीं डरती किसी के त्याग से
    नहीं माने किसी के दाँव ये
    यह जीवन उसका अपना है
    अपनी मंज़िल,अपना सपना है।
    सही कहा आज की नारी अब मैदान में उतर चुकी
    अब डर नहीं अब मंजिल पा के ही रहेगी...
    बहुत ही लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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