Sunday, May 3, 2020

मय के प्याले

जमा-पूंजी घटने लगी है
नौकरी के पड़ते लाले
सरकारी आदेश से महके
घर में मय के प्याले

किसी की आँखें नम हुई
कुछ खुशियों से चहकी
खाली बर्तन बोल रहे हैं
अब घर में मदिरा महकी

रोटी की दरकार यहाँ पर
पर खुल रहीं मधुशाला
काम-काज सब ठप्प हुए
जड़ गया उनपे ताला

काँधे पे बैठाए बालक
पैदल ही घर को भागे
कोई दीन की सुध नहीं लेता
भटक रहे हैं अभागे

आज समस्या बनी महामारी
दवा कोई काम न आती
काल डस रहा मानव को
विपदा सबको ही डराती

खोलो तो सब ताले खोलो
क्यों खोली है मधुशाला
घर-घर शांति भंग कराने
क्यों पिलाना विष का प्याला

हँसी-खुशी से जीवन चलता
संग रूखी-सूखी खाकर
मय के प्याले छलकेंगे
तो बची पूँजी भी गँवाकर

घर-घर होगी महाभारत
जब रोटी न होगी थाली में
बालक के लिए दूध न होगा
मदिरा छलकेगी प्याली में

गुत्थमगुत्था होते सब
पहले मेरी बारी
दो फुट दूरी के नियम भूले
बढ़ा रहे हैं बीमारी
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. Well said .The words r very meaningful.

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  2. अफसोसजनक.....पर शायद सरकार की भी मजबूरी🙏🙏🙏जाने कब लोग समझेंगे???

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  3. वाह !बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रिय सखी 👌

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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    कामिनी सिन्हा

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