Thursday, January 14, 2021

मौका मिले न बार बार

काल सा रूप लेकर
जीव को डसती रही
बोझ लेकर लाशों का
साल बीस ढल गई
काँपता था देख मानव
काल के इस रूप से
मौत का ये हार लेकर
मिले किस स्वरूप में
आस फिर मन में जगी
साल नयी खुशियों भरी
कालिमा जग से मिटाकर
धूप खिलेगी आशा भरी
मानव संभलकर चल
विनाश का ना भार ले
खिलती हुई प्रकृति सदा
खुशियों का आशीष दें
क्रोध सृष्टि का बढ़ाकर
अंज़ाम देखा संसार ने
रंक से राजा बने तो
कई मिल गए खाक में
नियति की नीति का
राज ना समझा कोई
मूढ़ मनुज सोचता है
ज्ञानी न उस जैसा कोई
दंभ सारे टूट बिखरे
एक ही लाठी चली
सत्य जीवन मृत्यु का
देखकर काठी कँपी
भूल को सुधारने का
मौका मिले न बार बार
हरी भरी प्रकृति खिले
देती जीवन उपहार
प्राणवायु जहर मिली अब
कोई ना जग में सहे
गंदगी को दूर करें तभी
स्वच्छ निर्मल सरिता बहे
दूर होंगे रोग सारे
सुखमय संसार होगा
सत्य की फहरे पताका
भावनाओं में प्यार होगा।
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार


9 comments:

  1. हार्दिक आभार दी

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  3. लाजवाब सृजन 👌👌

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    1. हार्दिक आभार मीना जी

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  4. हार्दिक आभार सखी

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  5. भावाभिभूत करता सृजन ।

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  6. भावपूर्ण, प्रेरणादायी बहुत ही सुन्दर सृजन - -

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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